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सोवियत संघ का विघटन और एकध्रुवीय विश्व का उदय (The Disintegration of the Soviet Union and the Rise of the Unipolar World)
1985 से 1991 के बीच सोवियत संघ (soviot union) का पतन आधुनिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में से एक था। इससे दशकों तक चले शीत युद्ध के दौरान की द्विध्रुवीय सत्ता संतुलन खत्म हो गया और संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की अकेली महाशक्ति बनकर उभरा। यह ऐतिहासिक विश्लेषण उन कारणों की पड़ताल करता है, जिनसे सोवियत साम्यवाद का पतन हुआ, पूर्वी यूरोप में राजनीतिक बदलाव आए और एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्थापित हुई।
सोवियत संघ के पतन के कारण (1985-1991) Factors Leading to the Collapse of the Soviet Union (1985-1991)
1. आर्थिक ठहराव
1970 के दशक में लियोनिद ब्रेझनेव के शासनकाल में सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था ठहराव के दौर में प्रवेश कर चुकी थी।
- सरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था में कुशलता और उत्पादकता की कमी थी।
- कृषि उत्पादन मांग से पीछे था, जिससे खाद्य संकट पैदा हो रहा था।
- हथियारों की दौड़ के कारण रक्षा क्षेत्र पर भारी खर्च हुआ, जिससे अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा।
2. गोर्बाचेव के सुधार
1985 में मिखाइल गोर्बाचेव ने नेतृत्व संभालते हुए सुधारों के माध्यम से सोवियत संघ को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
- पेरिस्ट्रोइका (आर्थिक पुनर्गठन) और ग्लासनोस्त (राजनीतिक खुलापन) ने सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर कर दिया।
- इन सुधारों से लोगों को सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता मिली, जिससे साम्यवादी पार्टी की पकड़ कमजोर हो गई।
- जीवन स्तर में सुधार न होने से जनता का मोहभंग बढ़ता गया।
3. राष्ट्रवादी आंदोलन
सोवियत संघ 15 गणराज्यों का एक बहु-जातीय साम्राज्य था। गोर्बाचेव के सुधारों ने अनजाने में राष्ट्रवादी और अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा दिया।
- बाल्टिक राज्यों (लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया), यूक्रेन और आर्मेनिया में स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई।
4. भू-राजनीतिक चुनौतियां
- अफगानिस्तान युद्ध (1979-1989) में सोवियत संघ बुरी तरह फंस गया।
- अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने सख्त रुख अपनाते हुए सैन्य दबाव बढ़ा दिया।
5. अगस्त तख्तापलट और अंतिम पतन
1991 तक सोवियत राजनीतिक व्यवस्था टूट चुकी थी। कट्टरपंथी नेताओं ने गोर्बाचेव को हटाने और उनके सुधारों को पलटने का प्रयास किया।
- यह तख्तापलट विफल हो गया और बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में प्रतिरोध ने साम्यवादी पार्टी को और कमजोर कर दिया।
- 25 दिसंबर 1991 को गोर्बाचेव ने इस्तीफा दिया, और सोवियत संघ आधिकारिक रूप से भंग हो गया।
पूर्वी यूरोप में राजनीतिक बदलाव (1989-2001) Political Changes in Eastern Europe (1989-2001)
1. साम्यवादी शासन का पतन (1989)
गोर्बाचेव ने ब्रेझनेव सिद्धांत को छोड़ दिया, जिससे पूर्वी यूरोप पर सोवियत संघ का प्रभाव कम हो गया।
- बर्लिन की दीवार का गिरना (1989): यह घटना जर्मनी के एकीकरण की शुरुआत का प्रतीक बनी।
- शांतिपूर्ण क्रांतियां: पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और बुल्गारिया में साम्यवाद तेजी से समाप्त हुआ।
2. वारसॉ संधि का अंत और सोवियत वापसी
1991 तक वारसॉ संधि भंग हो गई और सोवियत सैनिक पूर्वी यूरोप से लौट गए।
3. यूरोपीय संघ और नाटो की ओर झुकाव
पूर्वी यूरोपीय देशों ने पश्चिमी संस्थानों में एकीकरण के प्रयास शुरू किए।
- 1999 और 2004 के बीच कई राष्ट्र नाटो में शामिल हुए।
- यूरोपीय संघ का भी पूर्व की ओर विस्तार हुआ।
शीत युद्ध का अंत और अमेरिका का उदय
शीत युद्ध के अंत ने न केवल सोवियत संघ को खत्म किया, बल्कि अमेरिका को एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरने का अवसर भी दिया।
1. आर्थिक और सैन्य वर्चस्व
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति अद्वितीय बन गई।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक) में अमेरिका की भूमिका प्रमुख हो गई।
2. वैश्वीकरण
1990 के दशक में वैश्वीकरण तेज हुआ। अमेरिकी कंपनियां (जैसे माइक्रोसॉफ्ट, मैकडॉनल्ड्स) पूंजीवादी सफलता का प्रतीक बन गईं।
3. एकध्रुवीय व्यवस्था को चुनौतियां
- क्षेत्रीय शक्तियां, जैसे चीन, धीरे-धीरे अपनी ताकत बढ़ाने लगीं।
- अमेरिका को मध्य पूर्व में संघर्ष और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
निष्कर्ष
1985 से 1991 के बीच आर्थिक संकट, राजनीतिक सुधार, राष्ट्रवादी आंदोलन और भू-राजनीतिक दबावों ने सोवियत संघ के विघटन और शीत युद्ध के अंत का कारण बना। पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन ने पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठता की राह खोली।
हालांकि अमेरिका को तत्कालीन एकमात्र महाशक्ति का दर्जा मिला, लेकिन नए वैश्विक शक्तियों के उदय ने भविष्य में एक अधिक जटिल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नींव रखी।