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भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) UPSC in Hindi
Table of Contents
भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
भारत के संविधान (अनुच्छेद 148) में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है, जिसे संक्षेप ‘महालेखा परीक्षक’ (CAG) कहा गया है। यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का मुखिया होता है। यह लोक वित्त का संरक्षक होने के साथ-साथ देश की संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था का नियंत्रक होता है। इसका नियंत्रण राज्य एवं केंद्र दोनों स्तरों पर होता है। इसका कर्तव्य होता है कि भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक भारतीय संविधान के तहत सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारत सरकार के रक्षकों में से एक होगा। इन रक्षकों में उच्चतम न्यायालय, निर्वाचन आयोग एवं संघ लोक सेवा आयोग शामिल हैं।
Who is Comptroller and Auditor General of India?
Shri Girish Chandra Murmu joined office as the Comptroller and Auditor General of India on 8th August 2020.
CAG , नियुक्ति एवं कार्यकाल
महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। कार्यभार संभालने से पहले यह राष्ट्रपति के सम्मुख निम्नलिखित शपथ या प्रतिज्ञान लेता है:
- सविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा।
- भारत की एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा।
- सम्यक प्रकार से और श्रद्धापर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूंगा।
- संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूगा।
Tenure of CAG –भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष (जो भी पहले हो) की आयु तक होता है।
इससे पहले वह राष्ट्रपति के नाम किसी भी समय अपना त्यागपत्र भेज सकता है। राष्ट्रपति द्वारा इसे उसी तरह हटाया जा सकता है, जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। दूसरे शब्दों में, संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत के साथ उसके दुर्व्यवहार या अयोग्यता पर प्रस्ताव पास कर उसे हटाया जा सकता है।
स्वतंत्रता Independence of CAG
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्था की गई हैं:
1. इसे कार्यकाल की सुरक्षा मुहैया कराई गई है। इसे केवल राष्ट्रपति द्वारा संविधान में उल्लिखित कार्यवाही के जरिए हटाया जा सकता है। इस तरह यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर नहीं रहता यद्यपि इसकी नियुक्त राष्ट्रपति द्वारा ही होती है।
2. यह अपना पद छोड़ने के बाद किसी अन्य पद, चाहे वह भारत सरकार का हो या राज्य सरकार का, ग्रहण नहीं कर सकता।
3. इसका वेतन एवं अन्य सेवा शर्ते संसद द्वारा निर्धारित होती हैं। वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है।
4. इसके वेतन में और अनुपस्थिति, छुट्टी, पेंशन या निवृत्ति की आयु के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
5. भारतीय लेखा परीक्षक, लेखा विभाग के कार्यालय में काम करने वाले लोगों की सेवा शर्ते और नियंत्रक महालेखा परीक्षक की प्रशासनिक शक्तियां ऐसी होंगी जो नियंत्रक-महालेखा परीक्षक से परामर्श करने के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं।
6. नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।
अत: इन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता। कोई भी मंत्री संसद के दोनों सदनों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है और कोई मंत्री उसके द्वारा किए गए किसी कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकता।
CAG , कर्तव्य और शक्तियां
संविधान (अनुच्छेद 149) संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंन्द्र, राज्य या किसी अन्य प्राधिकरण या संस्था के महालेखा परीक्षक से जुड़े लेखा मामलों को व्यास्थापित करे। इसी से जुड़े संसद ने महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां एवं सेवा शर्ते) अधिनियम 1971 को प्रभावी बनाया। इस अधिनियम को 1976 में केंद्र सरकार के लेखा परीक्षा से लेखा को अलग करने हेतु संशोधित किया गया।
संसद एवं संविधान द्वारा स्थापित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं:
1. वह भारत की संचित निधि, प्रत्येक राज्य की संचित निधि और प्रत्येक संघ शासित प्रदेश, जहां विधानसभा हो, से सभी व्यय संबंधी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता
2. वह भारत की संचित निधि और भारत के लोक लेखा सहित प्रत्येक राज्य की आकास्मिकता निधि और प्रत्येक राज्य के लोक लेखा से सभी व्यय की लेखा परीक्षा करता है।
3. वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी विभाग द्वारा सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण लाभ और हानि लेखाओं, तुलन पत्रों और अन्य अनुषंगी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है। वह केन्द्र और प्रत्येक राज्य की प्राप्तियों और व्यय की लेखा परीक्षा स्वयं को यह संतुष्ट करने के लिए करता है कि राजस्व के कर निर्धारण, संग्रहण और उचित आवंटन पर प्रभावी निगरानी सुनिश्चित के नियम और प्रक्रियाएं निर्मित की गई हैं।
4. वह निम्नांकित प्राप्तियों और व्ययों का भी लेखा परीक्षण करता है:
(अ) वे सभी निकाय एवं प्राधिकरण, जिन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान मिलता है;
(ब) सरकारी कंपनियां, एवं;
(स) जब संबद्ध नियमों द्वारा आवश्यक हो, अन्य निगमों एवं निकायों का लेखा परीक्षण।
5. वह राष्ट्रपति या राज्यपाल के निवेदन पर किसी अन्य प्राधिकरण के लेखाओं की भी लेखा परीक्षा करता है। उदाहरण के लिए स्थानीय निकायों की लेखा परीक्षा।
6. वह राष्ट्रपति को इस संबंध में सलाह देता है कि केन्द्र – और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिए।
7. वह केंद्र सरकार के लेखों से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है, जो उसे संसद के पटल पर रखते हैं (अनुच्छेद 151)।
8. वह किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों का निर्धारण और प्रमाणन करता है (अनुच्छेद 279) । उसका प्रमाण पत्र अंतिम होता है। शुद्ध आगमों का अर्थ है-कर या शुल्क की प्राप्तियां, जिसमें संग्रहण की लागत सम्मिलित न हो।
9. वह संसद की लोक लेखा समिति के गाइड, मित्र और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।