Welcome to Exams ias
सूरत अधिवेशन या सूरत विभाजन 1907
सूरत विभाजन 1907 -Surat Split in hindi
Surat spilit upsc congress ka vibhajan adiveshan in hindi
Surat mein Congress ka Vibhajan kab hua?(सूरत में कांग्रेस का विभाजन) Surat mein Congress ka Vibhajan 1907 mein hua.
Immediate Cause Of SURAT SPLIT सूरत विभाजन का तात्कालिक कारण – अध्यक्ष का विवाद -उग्रवादी (Extremist) लाला लाजपत रॉय को अध्यक्ष बनाना चाहते थे जबकि उदारवादी (Moderator) रास बिहारी बोस को।
- 1905 में बनारस अधिवेशन हुआ तो इसकी अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की इसमें उदार वादियों और उग्रवादियों के मतभेद सामने आए इस अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक ने नरमपंथी के रवैया की तीखी आलोचना की। तिलक स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को पूरे देश में फैलाना चाहते थे पर नरमपंथी इसे केवल बंगाल तक सीमित रखना चाहते थे। इस अधिवेशन में मध्यम मार्ग पढ़ाया गया और कांग्रेस का विभाजन कुछ समय के लिए टाल दिया गया।
- 1996 हुए कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में भी उग्रवादियों का बोलबाला रहा और दादाभाई नरोजी के अध्यक्ष चुने जाने के बाद स्वराज और प्रशासन को कांग्रेस ने अपना लक्ष्य घोषित किया इस अधिवेशन में उदार वादियों के प्रस्तावों को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया
- 1907 में सूरत में यह टकराव सुनिश्चित हो गया। और निम्न कारणों से कांग्रेस में पहला सूरत विभाजन हुआ-
सूरत विभाजन का कारण 1907
- सूरत विभाजन का पहला कारण -उदार वादियों के रासबिहारी बोस तथा उग्रवादियों के लाला लाजपत राय थे और अंततः रासबिहारी अध्यक्ष बने।
- दूसरा कारण बंगाल विभाजन था जिसमें उग्रवादी इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहते थे।
- तीसरा कारण 1905 में आए प्रिंस ऑफ वेल्स का स्वागत किया गया जिसका विरोध उग्रवादियों ने किया।
- चौथा कारण आम लोगों को शामिल होने में भी मतभेद था
- इन वजहों से सूरत में कांग्रेस में प्रथम विभाजन हुआ।
- 1908 में कांग्रेस का नवीन संविधान और नियमावली बनी।
- एक लेख में तिलक द्वारा बमबारी जैसे शब्दों का प्रयोग करने पर उन्हें 6 वर्ष के लिए देश से निकाल दिया गया और वर्मा जेल में भेजा गया इसी समय बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और लाला लाजपत राय विदेश चले गए इस कारण अतिवादी आंदोलन असफल हुआ किंतु 1914 में तिलक की देश वापसी के पश्चात इसमें पुनः तेजी आई।
मार्ले मिंटो सुधार 1909
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की बात कही गई।*
- वायसराय लॉर्ड मिंटो और भारतीय सचिव जॉन मार्ले उदार वादियों और मुस्लिमों द्वारा प्रस्तुत कुछ सुधारों पर सहमत हुए और इनको एक दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत किया जो भारतीय परिषद अधिनियम 1909 में रूपांतरित हुआ।