Conquest of Bengal Battle of Plassey and Battle of Buxar Notes


Conquest of Bengal Battle of Plassey and Battle of Buxar Notes


Conquest of Bengal अंग्रेजों की बंगाल विजय

Conquest of Bengal Battle of Plassey and Battle of Buxar Notes – बंगाल के नवाब बंगाल, बिहार और ओडिशा के शासक थे। 18वीं सदी में बंगाल से यूरोपको निरंतर कच्चे उत्पादों जैसे शोरा, चावल, नील, काली मिर्च, चीनी. रेशम, कढ़ाई-बुनाई के सामान आदि का निर्यात होता था। प्रारंभिक 18वीं सदी में ब्रिटेन को एशिया से होने वाले आयात का 60 प्रतिशत सामान बंगाल से जाता था।

वर्ष 1700 ई. में मुर्शिद कुली खां, बंगाल का दीवान नियुक्त हआ और मृत्यु (1727 ई.) तक बंगाल की बागडोर संभाले रहा। इसके बाद उसके दामाद शुजा ने चौदह वर्ष तक बंगाल पर शासन किया। इसके बाद एक वर्ष के अल्प समय के लिए शासन मुर्शिद कुली खां के अयोग्य बेटे के हाथ में आ गया, लेकिन शीघ्र ही अलीवर्दी खां ने उसका तख्ता पलटकर सत्ता हथिया ली और 1756 तक बंगाल पर शासन किया। इनके शासनकाल में बंगाल अत्यधिक समृद्ध हो गया। बंगाल में इस समृद्धि के कई अन्य कारण भी थे।

अंग्रेजी कंपनी को विशेषाधिकार देने से बंगाल प्रांत का प्रशासन बेहद नाराज था क्योंकि इससे प्रांतीय राजकोष को बड़ी हानि उठानी पड़ रही थी। इसलिए अंग्रेजी व्यापारिक हितों एवं बंगाल सरकार के बीच यह मतभेद का मुख्य कारण बना। 1737 और 1765 की अल्पावधि के बीच शक्ति का प्रवाह धीरे-धीरे बंगाल के नवाबों से अंग्रेजों को होने लगा

सिराज-उद-दौला और अंग्रेज

1740 ई. में सरफराज खां को अपदस्थ कर अलीवर्दी खां बंगाल का नवाब बना। वह योग्य शासक था, पर उसका पूरा शासनकाल मराठों से युद्ध में ही गुजर गया। 1756 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उत्तराधिकार के लिए कोई पुत्र न होने के कारण उसकी तीन पुत्रियों के परिवार से किसी को नवाब बनना था। षड्यंत्र हुए। अंततः छोटी बेटी का लड़का सिराजुद्दौला नवाब बना। बड़ी बेटी घसीटी बेगम, राजवल्लभ और एक अन्य बेटी के पुत्र शौकतजंग की शत्रुता का सामना तो सिराज को करना ही पड़ा; इधर कम्पनी की उद्दण्डता भी बहुत बढ़ गई थी।

1757 से 1765 तक बंगाल का इतिहास नवाब से अंग्रेजों को राजनैतिक सत्ता के क्रमिक हस्तातरण का इतिहास है। इस संक्षिप्त 8 वर्षों के समय के दौरान बंगाल में तीन नवाबों सिराजउद्दौला, मीर जाफर और मीर कासिम ने शासन किया।

सिराज के शत्रु

सिराज के उत्तराधिकार का विरोध उसकी चाची घसीटी बेगम तथा उसके चचेरे भाई शौकत जंग ने किया। नवाब के दरबार में जगत सेठ, अमीचन्द, राजवल्लभ, राय दुर्लभ, मीर जाफर एवं कुछ अन्य लोगों का एक शक्तिशाली गुट था और उन्होंने भी सिराज के उत्तराधिकार का विरोध किया। मई 1756 में सिराज ने पूर्णिया के विद्रोही नवाब का दमन करने के लिए पूर्णिया की ओर प्रस्थान किया। परन्तु जब उसे कलकत्ता में अंग्रेजों के अवज्ञाकारी और उघड व्यवहार का पता चला, तो वह राजमहल से ही वापस लौट आया। उसने कलकत्ता पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। तदुपरान्त उसने पूर्णिया के विरुद्ध प्रभावशाली ढंग से सैनिक अभियान किया। शौकत जंग पराजित हुआ और (अक्टूबर, 1756 में) मनिहारी के युद्ध में मारा गया। सिराज के सौभाग्य का सितारा अब अपने उत्त्कर्ष पर था। इसी समय उसे बंगाल, बिहार और उड़ीसा की सूबेदारी पर उसकी नियुक्ति का शाही (मुगल) फरमान प्राप्त हुआ।

अंग्रेजों ने सिराज की आंतरिक कमजोरी का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कलकत्ते की किलेबंदी शुरू कर दी, राजवल्लभ के पुत्र को अपने किले में शरण दे दी, दस्तक का तो वे दुरुपयोग कर ही रहे थे सिराज ने अंग्रेजों से इन सबके लिए विरोध जताया। परन्तु, अंग्रेज दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों के विरुद्ध अपनी सफलता से उत्साहित थे, सिराज के आदेश से विचलित नहीं हुए। सिराज ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया-पहले कासिम बाजार पर और फिर 20 जून, 1756 ई. को फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजों ने फुल्ता द्वीप पर जाकर शरण ली।

BLACK HOLE TRAGEDY/ INCIDENT – BLACK HOLE OF CALCUTTA

फोर्ट विलियम किले की एक कोठरी में कई अंग्रेजों को कैदी बनाकर बंद कर दिया गया, इसका उल्लेख हॉलवेल द्वारा किया गया है नवाब ने एक छोटी सी कोठरी में 146 अँगरेज़ बंद कर दिए जिसमे किस तरह से इतने आदमी आ नहीं सकते थे , दर्दनाक तरीके से इनमे से काफी मर गए सिर्फ 23 ही ज़िंदा बच सके। यही घटना इतिहास में ब्लैक होल के नाम से दर्ज़ हो गयी। काल कोठरी से जिंदा निकले अंग्रेजों को सिराजुद्दौला ने मुक्त कर दिया।

सिराजुद्दौला के अंग्रेजों से अप्रसन्न रहने का एक कारण यह भी था कि न्यायदंड के भय से भागे राजवल्लभ के पुत्र कृष्णदास को अंग्रेजों ने शरण दे। रखी थी।

Black hole of calcutta

जब बंगाल से अंग्रेजों के निष्कासन की खबर मद्रास पहुंची तो वहां से एडमिरल वाटसन और कर्नल क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना को कम्पनी की सहायता हेत बंगाल की ओर भेजा गया। अंग्रेजों ने जनवरी 1757 ई. में फिर से कलकत्ता पर अधिकार कर लिया और मार्च 1757 ई. में चंद्रनगर पर आक्रमण कर उस पर भी अपना अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला अल्पवयस्क होने के कारण इन परिस्थितियों से अच्छी तरह निबट नहीं सका और उसने अंग्रेजों से अलीनगर की संधि भी कर ली। अंग्रेजों ने इस संधि की अवहेलना की और 12 जून को षड्यंत्रपूर्वक दरबारियों से मिलकर क्लाइव के नेतृत्व में एक सेना भेजी। सिराजुद्दौला ने भी अंग्रेजों का मार्ग रोकने के लिए सेना एकत्रित की, लेकिन उसके सेनापति अंग्रेजों से मिल चुके थे। 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध आरंभ हुआ।

Plassey War प्लासी का युद्ध 1757

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The battle of plassey was fought in plassey (Bengal) . It was the most Unheroic English victory.

Plassey ke battle me istemal cannon ball
Plassey ke battle me istemal cannon ball


प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 ई. ( battle of plassey was fought between )को बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला की सेना और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच हुई। सिराजुद्दौला की सेना की संख्या लगभग 50000 थी तथा अंग्रेजों की सेना की संख्या मात्र 3200 थी। परंतु, सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर के षड्यंत्र में शामिल होने के कारण सेना के एक हिस्से ने युद्ध में भाग नहीं लिया। जब सिराजुद्दौला को पता चला कि उसके बड़े-बड़े सेनानायक मीर जाफर तथा दुर्लभराय विश्वासघात कर रहे हैं तो वह अपनी जान बचाकर युद्ध क्षेत्र से भाग गया। युद्ध क्षेत्र से भागकर सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद पहुंच गया और फिर वहां से अपनी पत्नी के साथ पटना भाग गया। कुछ समय बात मीर जाफर के पुत्र ने सिराजुद्दौला की हत्या कर दी। इस प्रकार अंग्रेजों का मकसद सफल रहा।

Plassey war

मीर जाफर एवं मीर कासिम तथा अंग्रेज

मीर जाफर

मीर जाफर बंगाल का नया नवाब बना। प्लासी की लड़ाई से पूर्व ही लाइव ने मीर जाफर को नवाब का पद देने का वायदा किया था। यह सिराजददौला के विरुद्ध अंग्रेजों की सहायता का उपहार था। कम्पनी को नवाब ने अपनी कृतज्ञता के रूप में बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान कर दी। कलकत्ता के पास 24 परगना की जमींदारी भी अंग्रेजों को मिल गई। ब्रिटिश व्यापारियों एवं अधिकारियों को निजी व्यापार पर भी कर से मुक्ति मिल गई। ये सारी बातें तो सार्वजनिक रूप में हुईं। मीर जाफर को अपने अंग्रेज मित्रों के द्वारा किये गये समर्थन के लिए भारी रकम अदा करनी पड़ी, परन्तु मुर्शिदाबाद के सरकारी कोष में क्लाइव और उसके अन्य साथियों की मांगों को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त धन न था। मीर जाफर ने अंग्रेजों को नजराने एवं हर्जाने के रूप में लगभग 17,50,000 रुपये अदा किये।

मीर जाफर जैसे ही सत्तासीन हुआ उसने तुरन्त निम्नलिखित गंभीर समस्याओं का सामना कियाः

  • मिदनापुर के राजा राम सिन्हा तथा पूर्णिया के अली खां ,जमीदारों ने उसे अपना शासक मानने से इंकार कर दिया।
  • उसको अपने कुछ अधिकारियों जैसे दुर्लभराय की वफादारी पर संदेह था। परंतु दुर्लभराय क्लाइव की शरण में था, इसलिए वह उसको छू भी न सका।
  • मुगल बादशाह का पुत्र शाह आलम ने बंगाल के सिंहासन पर अधिकार करने का प्रयास किया।
  • अंग्रेजी कंपनी का ऐसा विचार था कि मीर जाफर, डच कंपनी के सहयोग से बंगाल में अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव में कटौती करने की कोशिश कर रहा था।

इस बीच जाफर के पुत्र मीरान की मृत्यु के कारण उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर फिर एक विवाद पैदा हो गया। मीरान के पुत्र और मीर जाफर के दामाद मीर कासिम के बीच इसके लिए संघर्ष हुआ और कलकत्ता के नये गवर्नर वान्सिटॉर्ट ने मीर कासिम का पक्ष लिया। वान्सिटॉर्ट के साथ एक गुप्त समझौते के द्वारा मीर कासिम कंपनी को आवश्यक धन अदा करने के लिए इस शर्त पर सहमत हुआ, कि यदि वे बंगाल के नवाब के लिए उसके दावे का समर्थन करें।

मीर कासिम

मीर कासिम अलीवर्दी खां के उत्तराधिकारियों में सबसे योग्य था तथा अंग्रेजों की चाल भलीभांति समझता था। इसलिए सत्ता को प्राप्त करने के बाद मीर कासिम ने दो महत्वपूर्ण कार्य किए:

अपनी पसंद के अधिकारियों के साथ उसने सेना के कौशल तथा क्षमता को बढ़ाने के लिए उसमें भी सुधार किया।

कलकत्ता में स्थित कंपनी से सुरक्षित दूरी को बनाये रखने के लिए अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर में हस्तांतरित कर दिया।

फिर उसने में कम्पनी द्वारा की जाने वाली अनियमितताओं के विरुद्ध कदम उठाया, उसने शाही फरमान के वैयक्तिक उपयोग पर कड़ी आपत्ति की। 1762 ई. के अंत में मुंगेर में अंग्रेज प्रतिनिधि वान्सिटॉर्ट ने मीरकासिम से संधि की। इसमें अंग्रेजों से की जाने वाली चुंगी की राशि 9 प्रतिशत रखी गई। पर, कलकत्ता की काउंसिल ने इस संधि को अस्वीकार कर दिया। मुक्त व्यापार वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। मीर कासिम जब इस बात से अवगत हुआ, तब उसने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए भारतीय व्यापारियों को भी कर मुक्त व्यापार करने की आज्ञा दे दी। अंग्रेजों ने मीर कासिम के इस कदम को अपने लिए अपमानजनक माना।

4-5 सितम्बर 1763, को राजकमल के निकट उद्दौनला में अंग्रेजों के हाथों पराजित होने के बाद मीर कासिम मुंगेर की तरफ भागा और तदुपरान्त पटना की ओर। मीर कासिम अंग्रेजों से बंगाल को हासिल करने के विचार से अवध की ओर भागा और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के साथ एक संधि की।

Battle of Buxar – Buxar War – बक्सर का युद्ध (1764)


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battle of buxar was fought between -मीर कासिम ने वहां के नवाब शुजाउद्दौला और शरणार्थी मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर एक संघ बनाया। शीघ्र ही शक्ति-परीक्षण भी हो गया। 22 अक्तूबर, 1764 ई. को बक्सर में युद्ध, प्लासी की तर्ज पर नहीं, बिल्कल तैयारी और अपनी-अपनी क्षमता के साथ हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजों ने अपने रण कौशल का परिचय दिया। मीर कासिम का संघ बुरी तरह पराजित हुआ। इस युद्ध में उत्तर भारत की प्रत्येक संभावनाओं को अंग्रेजों ने कुचल दिया और मुगल शक्ति की बची हुई साख भी धूल में मिल गई।

युद्ध के बाद 1765 ई. में क्लाइव दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर लौटा। उसने बक्सर युद्ध के समझौते के मसौदे तैयार किए, मुगल शहंशाह से बंगाल बिहार व उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली।

परन्तु, क्लाइव के आने से पहले मीर जाफर की मृत्यु हो चुकी थी (फरवरी, 1765 ई.) और उसके बेटे नजीमुद्दौला को अंग्रेजों ने नवाब की गद्दी पर बिठाकर उसके साथ समझौता किया |

मोहम्मद रजा खां बंगाल का पहला और अंतिम नायब सूबेदार बना।

इलाहाबाद की संधि (1765)

1765 में बंगाल के गवर्नर के रूप में क्लाइव वापस आया। उसने स्वयं को अपूर्ण कार्य को पूरा करने अर्थात् वह अंग्रेजों को बंगाल में सर्वोच्च राजनैतिक शक्ति बनाने में जुट गया। उसने 1765 में दो संधियां-एक मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के साथ और दूसरी अवध के नवाब के साथ-इलाहाबाद में की।

अवध शुआददौला के साथ संधिः

  • इलाहाबाद और कड़ा छोड़कर अवध का सारा क्षेत्र नवाब को वापस कर दिया गया|
  • कंपनी को पचास लाख रूपए देना होगा।
  • अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर अँगरेज़ सेना अवध में रखी जाएगी।
  • कंपनी को मुक्त व्यापर की सुविधा दी गयी।

शाह आलम द्वितीय के साथ संधिः

  • कंपनी को बादशाह की ओर से बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।
  • बादशाह को 26 लाख वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया गया।
  • इलाहाबाद और कड़ा वापस शाह आलम को मिल गया

बक्सर युद्ध का परिणाम

यह युद्ध अंग्रेज़ों के लिए बहुत बड़ी सफलता थी क्यूंकि प्लासी का युद्ध षड्यंत्रों से जीता गया था परन्तु यह जीत बिना छल के जीता गया
इसके बाद बंगाल में अंग्रेज़ों के शासन की स्थापना हुई और भारतीय राजाओं की कमज़ोरी जग जाहिर हो गयी।

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