Delhi Sultanate Notes for Ias in hindi

Delhi Sultanate Gulam Vansh in Hindi Upsc Notes

  • दिल्ली सल्तनत के बारे में तथ्य पूर्ण रूप से उपलप्ध नहीं है – delhi saltanate ka likhit srot – क्यूंकि इस समय का वर्णन अंग्रेज़ों और मुस्लिम इतिहासकारों से ही मिलता है , जिन्होनें स्वाभाविक रूप से अपने शासकों का गुणगान किया है।
  • Delhi sultanate Period – 1206 से 1526 तक दिल्ली पर पांच वंशों ने राज्य किया। जो निम्न है

Delhi sultanate Timeline

  1. गुलाम या मामलूक वंश
  2. खिलजी वंश
  3. तुगलक वंश
  4. सैय्यद वंश
  5. लोदी वंश

delhi sultanate history Delhi sultanate upsc notes

(Off the record note )कहा जाता है को इनसे ही दिल्ली सल्तनत की नीव पड़ी पर ये सभी तुर्क थे और मुहम्मद गोरी के गुलाम थे , तो इन्हे दिल्ली नाम कैसे मालूम पड़ा , गौर करने लायक बात यह है कि पृथ्वीराज चौहान पहले से ही दिल्ली पर शासन कर रहे थे।

गुलाम या मामलूक वंश Gulam Vansh/Dynasty Notes

mamluk rajvansh इसे दास वंश भी कहते है पर मामलूक का अर्थ होता है जंजीरों से मुक्त। अतः दोनों में विरोधाभास है तो इतिहासकारों ने इसे मामलूक वंश मन।
इसके शासक निम्न है –


कुतुबुद्दीन ऐबक

  • कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 -1210 – यह तुर्क था इसे पहले अजीज कूफ़ी ने ख़रीदा फिर बाद में गोरी ने। यह गोरी का सबसे भरोसेमंद था तभी इसे उत्तर भारत का सम्पूर्ण विजित क्षेत्र प्राप्त हुआ।
  • ऐबक ने युद्ध आदि का सामना अपनी वैवाहिक नीति से किया इसने गोरी के अन्य मुख्य अधिकारी यल्दौज की पुत्री से विवाह किया बाद में अपनी बहन का विवाह सिंध के प्रभावी अधिकारी कुबाचा से किया। अपनी दूसरी पुत्री का विवाह तुर्क दास अधिकारी इल्तुतमिश से किया
  • इसने न कभी अपने नाम का सिक्का चलाया न ही सुल्तान की उपाधि धारण की।
  • इसने लाहौर से ही शासन का संचालन किया और लाहौर को ही राज्य की राजधानी बनाया ।
  • इसके सेनापति बख्तिआर खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को गिराया।
  • 1210 में लाहौर में चौगान POLO खेलते समय घोड़े से गिरकर मृत्यु हो गयी इसके बाद आरामशाह लगभग एक साल के लिए गद्दी पर बैठा।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा

अजमेर में संस्कृत विश्वविद्यालय की जगह ऐबक ने इसे बनवाया

कुतुबमीनार

इसकी निर्माण की शुरुआत कुतुब्बुदीन ऐबक ने की तथा निर्माण कार्य को पूरा इल्तुतमिश ने करवाया , कुछ समय बाद इसकी ऊपरी ईमारत क्षतिग्रस्त हो गयी थी जिसकी मरम्मत फिरोजशाह तुगलक ने कराई। भूकंप के बाद इसकी कुछ मरम्मत सिकंदर लोदी ने भी कराई।

कुतुबमीनार का नाम सूफी ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था।

कुव्वल उल इस्लाम

दिल्ली में 1197 में निर्माण कराया , यह मस्जिद जैन – वैष्णव मंदिर के अवशेषो पर बनी है।

आरामशाह 1210

माना जाता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक का कोई पुत्र नहीं था अमीरों और सरदारों ने सैनिक विद्रोह और जनता का असंतोष कम करने के लिए आरामशाह को गद्दी पर बैठाया गया ।

यह एक कमज़ोर शासक था जिसको हटाने के लिए बदायूं के प्रांत शासक इल्तुतमिश को निमंत्रण भेजा गया । इल्तुतमिश ने 8 माह के आरामशाह के शासन को आराम दे दिया ।

इल्तुतमिश 1211-1236

  • ये इल्बरी तुर्क था इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । क्यूंकि ऐबक और आरामशाह ने लाहौर से ही शासन किया तथा इल्तुतमिश ने  दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया ।
  • इसे गुलामों का गुलाम भी कहा जाता है ।
  • इसे सुल्तान बनते ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , राजपूत विद्रोह कर रहे थे और कुबाचा अपनी शक्ति बढ़ा रहा था तथा दिल्ली पर मंगोलों के आक्रमण का भय था । इन सब को दूर करने के लिए इल्तुतमिश ने कई कदम उठाए
  1. दिल्ली में अमीरों का दमन किया ।
  2. यलदौज मुख्य विरोधी था तराइं के मैदान में इसका दमन कर दिया गया।
  3. बंगाल में विद्रोहियों को दमन किया।
  4. कुबाचा के लिए इल्तुतमिश ने दो तरफ से आक्रमण किया , भागते समय नदी में डूबकर कुबाचा की मृत्यु हो गई ।
 दिल्ली सल्तनत - गुलाम या मामलूक वंश

चालीस अमीरों के दल को गठन – चालीसा दल – चहलगानी

चालीस तुर्क अमीर और गुलामों का दल बनाया गया जो योग्य और विश्वसनीय थे । इसे चालीसा दल या turkan ए चहलगानी कहा जाता था ।

खलीफा का प्रमाण पत्र

1229 में बग़दाद में खलीफा ने इल्तुतमिश को सुल्तान ए आज़म की उपाधि प्रदान की जिस से अब वह सही मायने में इस्लामिक जनता का सुल्तान बन गया। ऐसा करने वाला यह दिल्ली का पहला सुल्तान था।

इसने अपनी बेटी रजिया को उत्तराधिकारी घोषित किया

  • ILTUTMISH SILVER COINS
  • यह पहला तुर्क सुल्तान था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किये तथा इस युग के 2 महत्त्वपूर्ण सिक्के जारी किये – चांदी का टंका और ताम्बे का जीतल
  • विदेशों में चलने वाले टँको टकसाल का नाम लिखने की परंपरा भारत में इल्तुतमिश ने ही शुरू की।
  • इल्तुतमिश एक सफक राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ था इसका अधिकांश समय युद्ध में व्यतीत हुआ फिर भी ये अच्छा प्रशासक था भारत में मुस्लिम सत्ता का वास्तविक श्री गणेश इल्तुतमिश ने ही किया।
  • साहित्य
  • इसके दरबार में प्रसिद्ध इतिहासकार मिन्हास -उस – सिराज रहता था जिसने तबकात ए नासिरी की रचना की।
  • इल्तुतमिश को भारत में गुम्बद निर्माण का पिता भी कहा जाता है
  • चंगेज खान
  • मंगोल आक्रमण से बचने के लिए ख़्वारिज़्म के युवराज ने इल्तुतमिश से शरण मांगी पर इल्तुतमिश ने नम्रता पूर्वक मना कर दिया इसका कारण यह था की चंगेज़ खान की शत्रुता लेना समझदारी नहीं थी।

इल्तुतमिश का मकबरा TOMB OF ILTUTMISH
साधारण वास्कुकाला वाला यह मकबरा दिल्ली में है तथा इसमें छत नहीं है।

रजिया सुल्तान 1236-1240

  • इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद लगभग 30 सालों तक शासन अस्त व्यस्त रहा। रजिया सुल्तान को अमीरों ने गद्दी पर बैठने नहीं दिया उसकी जगह अयोग्य पुत्र रुक्कूंदीन फिरोजशाह को गद्दी पर बैठाया जिसके ऊपर उसकी माँ तुर्कान का नियंत्रण था जो एक तुर्क दासी थी। इसने अराजकता फैला दी जिसका फायदा उठाकर रजिया सुल्तान ने लाल वस्त्र पहनकर दिल्ली जनता के सामने इन्साफ माँगा।
  • जनता ने रजिया का समर्थन किया तथा विद्रोह कर रजिया को सुल्तान बनाया। यह पहला मौका था जब जनता ने उत्तराधिकार के मामले में फैसला लिया था।
  • सबसे पहले रजिया ने विद्रोहियों का दमन किया इसने पर्दा त्याग कर पुरुषो के भांति कुबा (कोट) और कुलाह (टोपी) पहनकर जनता के सामने जाने लगी ।
  • इसने इक्ता और अक्ता में फेरबदल किया तथा उसने एक दास को अमीर ए आखुर बना दिया इससे खफा एक अमीर अल्तूनिया ने विद्रोह कर दिया अमीर वर्ग ने भी उसका साथ दिया इस विद्रोह से निपटने के लिए रजिया को अल्तुनिया से शादी करनी पड़ी
  • ऐसा माना जाता है कि रजिया जब वापस राजधानी जा रही थी तब रास्ते में कुछ डाकू ने की हत्या कर दी।
  • रजिया एक अच्छी शासिका थी उसने कभी दुर्बलता का परिचय नहीं दिया उसकी गलती आती कि वह स्त्री थी एक दूरदर्शी शिक्षित और दयालु शासिका थी।

रजिया सुल्तान के बाद के शासक

  • 1240 के बाद मोइनुद्दीन बहराम शाह शासक बना अमीरों ने 2 साल बाद इसकी भी हत्या करा दी इसके बाद अमीरों ने अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान बनाया इस काल में एक अमीर बलबन बहुत शक्तिशाली हो गया ।
  • अन्य अमीरों की सहायता से इसे 4 वर्ष बाद बंदी बनाकर इल्तुतमिश के पत्र नसरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया क्या नाम मात्र का शासक था बलबन भी तुर्कान ए चहलगानी का सदस्य था इसका राजनीतिक कद काफी ऊपर हो गया था इसे उलूग खा  की उपाधि दी गई। बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान से कराया सुल्तान की मृत्यु के बाद यह स्वयं सुल्तान बन गया कहा यह जाता है कि इसने स्वयं सुल्तान को जहर देकर मारा था।

गयासुद्दीन बलबन 1266 – 1286

  • यह इलबरी तुर्क था इसे मंगोलों ने पकड़कर गुलाम के रूप में बेच दिया था यह  दूरदर्शिता और योग्यता की वजह से इल्तुतमिश के चालीसा दल में शामिल हुआ ।
  • इल्तुतमिश का राज्य तहस-नहस हो चुका था और चारों ओर अव्यवस्था का राज था ताज का लोगों के मरने के लिए साधारण लोगों से मिलना छोड़ दिया इसने सिजदा यानी दंडवत होना और कदम चूमने जैसे नियम लागू कर दिए | बलबन ने चालीसा दल की समाप्ति कर दी और अमीरों की शक्ति को कुचलने के लिए छोटे छोटे अपराधों के लिए बहुत बड़े-बड़े दंड दिए।
  • इसने विद्रोहियों का दमन कठोरता पूर्वक किया तथा उलेमाओं को राजनीति से अलग किया क्योंकि इनका अच्छा खासा दबाव था इसने इस बात का समर्थन किया कि राजा के देवी अधिकार होते हैं तथा बलबन ने जिल्ले इलाही की उपाधि धारण की जिसका अर्थ होता है ईश्वर की छाया।
  • बलबन ने अपनी निरंकुशता बनाए रखने के लिए सेना का संगठन सही किया इसमें अधिकांश बूढ़े सैनिकों आदि को हटा दिया और सेना का सुदृढ़ीकरण किया। इसने दीवाने आरिज नामक व्यवस्थित सैन्य विभाग की स्थापना की।
  • गुप्तचर विभाग का संगठन- बलबन की शासन व्यवस्था को सुदृढ़ करने में गुप्तचर विभाग मुख्य रूप से उत्तरदाई रहा इसके विभाग का नाम बरीद ए मुमालिक था तथा गुप्तचर अधिकारी को बरीद कहा जाता था।
  • बलबन की न्याय व्यवस्था कठोर और गैर पक्षपातपूर्ण थी।
  • इसकी शासन व्यवस्था का आधार रक्त और लौह की नीति था जिसमें विद्रोही व्यक्ति की हत्या कर दी जाती थी और उसकी स्त्री एवं बच्चों को दास बना लिया जाता था।
  • 1286 में बलबन की मृत्यु हो गई।

बरनी के अनुसार -बलबन की मृत्यु से दुखी हुए मालिकों ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और सुल्तान के सबको नंगे पांव कब्रिस्तान ले जाते समय अपने सिर पर धूल फेंकी और 40 दिन का उपवास रखा।

  • बलबन की मृत्यु के 3 सालों के अंदर ही सारी व्यवस्था एवं पद प्रतिष्ठा खत्म हो गई।

बलबन के उत्तराधिकारी

उसके जीवन काल में ही उसके पुत्र मोहम्मद की मंगोलों से युद्ध करते हुए मृत्यु हो गई तथा दूसरे पुत्र बुगरा खां ने सुल्तान पद से कोई संबंध नहीं रखा। बलबन की मृत्यु के बाद उसके विश्वास पात्रों ने ही उसकी आदेश की अवहेलना की तथा अल्प वयस्क विलासी पुत्र कैकुबाद  को सुल्तान बनाया जिसकी कुछ समय बाद हत्या कर दी गई तथा उसे यमुना में फिंकवा  दिया गया तथा कुछ समय बाद गुलाम वंश का अंत हो गया तथा उसके बाद सामान्य कुल के खिलजियों  का शासन स्थापित हो गया।


johnjustcooooool
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