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Quasi-Judicial Bodies in India Hindi (UPSC)
Quasi-judicial बॉडी एक गैर न्यायिक बॉडी है यह कानून के संबंध में व्याख्या कर सकती है यह एक ऐसा गैर न्यायिक निकाय है जैसा एक ट्रिब्यूनल पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटिव एजेंसी के साथ-साथ एक निजी कानूनी इकाई हो सकता है और न्यायालय के समान अधिकार और प्रक्रिया रख सकता है। और साथ में आधिकारिक कार्यवाही का आधार भी दे सकता है। ऐसी कार्यवाही किसी समस्या का समाधान लाने में सक्षम होती हैं और कानूनी दंड देने में भी सक्षम होती हैं या कानूनी अधिकारों और कर्तव्यों को प्रभावित कर सकती है इसमें किसी कानूनी स्थिति को सही करने और प्रतिबंधों को लागू करने की क्षमता होती है।
यह अनिवार्य नहीं होता है कि अर्ध न्यायिक निकाय का संगठन किसी न्यायालय जैसे संगठन का हो।
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चर्चा में क्यों है?
प्रशासनिक निरीक्षण और निगरानी के अभाव में अर्ध न्यायिक न्यायालय उचित रूप से कार्य नहीं कर पा रहे हैं जिनके लिए उन्हें बनाया गया था।
Difference between Judicial and Quasi-judicial Hindi
न्यायिक निकाय और अर्ध न्यायिक (Quasi-judicial) निकाय में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं जैसे-
- न्यायिक निकाय कानूनों में बंधे होते हैं जबकि अर्ध न्यायिक निकाय आमतौर पर उतने बाध्य नहीं होते हैं
- कानून ना होने की स्थिति में न्यायिक निकाय नए कानून बना सकते हैं जबकि अर्ध न्यायिक निकायों के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होती है यह मौजूदा कानूनों पर ही न्याय कर सकते हैं।
- अर्ध न्यायिक निकायों को हमेशा सख्त न्यायिक नियमों को पालन करने की जरूरत नहीं होती है।
- अर्ध न्यायिक निकाय केवल तभी औपचारिक सुनवाई करते हैं जब ऐसा करना कानून और समझौता के तहत अनिवार्य हो जाए।
भारत में अन्य अर्द्ध-न्यायिक निकाय:
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)
- लोक अदालत वित्त आयोग
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
- आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण
सामान्य रूप से अर्ध न्यायिक न्यायालय की भूमिका
सामान्य रूप से जो न्यायिक प्रक्रिया होती है उसमें खर्च अधिक होने के कारण एक बड़ी आबादी न्यायालय नहीं जाती है वहीं पर अर्ध न्यायिक निकालो मैं लागत काफी कम हो जाती है जो जनता के लिए इसे सुलभ बनाती हैै।
ऐसे किसी भी निगाह में साक्ष्य सबूत जमा करने के लिए किसी लंबी प्रक्रिया का पालन नहीं करना पड़ता है।
अर्ध न्यायिक(Quasi-judicial) निकाय किसी जरूरी मामले को उठाते हुए जुडिशरी की सहायता से कार्य को बांट भी सकते हैं जैसे कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण प्रदूषण से संबंधित मामलों में फैसला न्यायालय की सहमति से लेता है।
अर्ध न्यायिक निकायों की चुनौतियां
यह कानून और व्यवस्था तथा अन्य प्रशासनिक कर्तव्यों के चलते व्यस्त हो जाते हैं इसके कारण अदालत का कार्य कम समय के लिए देख पाते हैं ।
अदालत के रिकॉर्ड तक अर्ध न्यायिक निकायों की पहुंच काफी कम है जिससे न्याय देने में कठिनता आती है आम तौर पर पीठासीन अधिकारियों को कानून से जुड़ी उचित जानकारी नहीं होती है।
अर्ध न्यायिक निकायों में सुधार की संभावना
- अर्ध न्यायिक न्यायालय (Quasi-judicial Courts) को अधिक कामकाज देना चाहिए, जिससे न्यायालय का बोझ कम हो ।
- अर्ध न्यायिक अर्ध न्यायिक न्यायालय के कार्य करने का समस्त डाटा समय-समय पर विधानमंडल और सार्वजनिक रूप से बाहर रखना चाहिए ।
- इनकी पहुंच Electronic Portal तक होनी चाहिए ताकि रिकॉर्ड की मदद से फैसले किए जा सके ।
- अधीनस्थ न्यायालयों का वार्षिक निरीक्षण अनिवार्य कर देना चाहिए ।
- अर्ध न्यायिक न्यायालय वर्कफोर्स कम होने पर निचले स्तर की एजेंसियों से मदद लेनी चाहिए।