Electoral Bond भारतीय डेमोक्रेसी को खतरा

यह लेख बताता है कि कैसे चुनावी बांड (Electoral Bond) राजनीतिक दलों द्वारा धन को इकट्ठा करने का जरिया बन गया है और पिछले सालों से और अधिक धन छुपाया जा रहा है।

एक आरटीआई के अनुसार इलेक्टोरल बांड मार्च 2018 में जब से जारी हुआ है उसके बाद से सिर्फ एसबीआई के द्वारा 10246 करोड़ रुपए के Electoral Bond बेचे गए हैं।

इलेक्टोरल बांड क्यों लाए गए?

Foreign Contribution Regulation Act (FCRA) का उल्लंघन करने वाले राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा दोनों दोषी पाए गए इन पर दोष पाया गया कि यह विदेशी कंपनी से अवैध रूप से चंदा लेते थे इसके बाद से दोनों पार्टियों ने एफसीआरए में कई सारे संशोधन किए ताकि इसे वैद्य बनाया जा सके और कारपोरेट और विदेशी चंदा देने वालों को गुमनाम बनाया जा सके ।

इलेक्टोरल बांड – क्या बदलाव किए गए?

पहले सिर्फ प्रॉफिट कमाने वाली डोमेस्टिक कंपनी राजनीतिक दलों में योगदान दे सकती थी परंतु अब घाटे में चल रही कंपनी भी योगदान कर सकती है ।

पहले विदेशी कंपनियां राजनैतिक चंदा नहीं दे सकती थी अब भारत में सकरी कोई भी विदेशी फल या कोई भी विदेशी फर्म जो सेल कंपनी चला रही है वह अब भारतीय राजनीतिक दलों को चंदा दे सकती है।

2017 में नकद चंदे की सीमा तय की गई पहले गुमनाम चंदा ₹20000 तक हो सकता था परंतु अब इसे घटाकर ₹2000 कर दिया गया।

इलेक्टोरल बांड क्या है ?

2017 में बजट में चुनावी बांड की घोषणा की गई थी तथा 2018 में इसे केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया, इस योजना / बांड योजना के तहत कोई भी भारतीय व्यक्ति या निगम इन Bondsको एसबीआई की शाखाओं से खरीद सकता है और राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है, सीधे शब्दों में कहें तो इलेक्टोरल बॉन्ड एक ऐसा जरिया है जिसके जरिए कोई भी राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है।

Electoral bond कैसे कैसे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है?

यह स्कीम सार्वजनिक निरीक्षण (Public Auditing) को कम करती है केवल सत्ताधारी दल ही इस बांड के द्वारा किए जा रहे दान का विवरण रखती है और कोई भी विवरण सार्वजनिक होने में बहुत देरी की जाती है ।

Electoral bond की वजह से कंपनियों और अमीर व्यक्तियों का सरकारी सार्वजनिक नीतियों पर प्रभाव हो जाता है इससे जनता की शक्ति कमजोर होती है।

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी 2021 में दिए गए टिप्पणी के अनुसार चुनावी बांड पर बिक्री पर रोक लगाने से इनकार किया और कहा की चुनावी बांड में पारदर्शिता लाने के लिए बांड के खरीददार और राजनीतिक दल में समझौता हो।

Electoral Bond समस्याएं और आगे का रास्ता

सभी प्राइवेट कंपनियां अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चुनावी चंदे का जिक्र नहीं करती हैं क्योंकि यह अनिवार्य नहीं होता है एक और समस्या यह है कि पंजीकृत कंपनियों की कुल संख्या भी अज्ञात है ।

जिस कंपनी या व्यक्ति ने चुनावी बांड खरीदा हो और जिस राजनीतिक पार्टी ने उसे बनाया हो उसकी जानकारी एसबीआई के माध्यम से संसद में पेश होनी चाहिए यह रिपोर्ट विपक्ष और जनता के लिए भी सुलभ होनी चाहिए तथा आरटीआई को मजबूत चाहिए ताकि आरटीआई में मांगी गई जानकारी आसानी से मिल सके ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *