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जैन धर्म Jain Dharm in Hindi
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प्राचीन भारत में धार्मिक आंदोलन
Jain Dharm in Hindi jain dharm ke siddhant jain dharm ke niyam -जीवन के प्रारंभिक दौर में मानव जब आगे बढ़ने लगा तो के दिमाग में ख्याल उठने लगे कि हम जन्म क्यों लेते हैं? या फिर दुनिया को किसने बनाया इन सारे सवालों को ढूंढते हुए छठी ईस्वी पूर्व की शताब्दी में अनेक धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ इस तरह के धर्म मानव सभ्यता को मूलभूत सवालों के जवाब देते थे और इससे मानवी जीवन शैली बदली मुख्यता वैदिक धर्म में जीवन में काफी बदलाव कर दिए |
- शुरुआत में वैदिक धर्म ही एक धर्म हुआ करता था परंतु निम्न कारणों की वजह से अन्य धर्मों की उत्पत्ति हुई-
- वैदिक धर्म की जटिलता एवं यज्ञों की परंपरा शुरुआत में वैदिक धर्म अत्यधिक सरल था परंतु बाद में यह क्लिष्ट होता गया
- जाति प्रथा की जटिलता
- वैदिक ग्रंथों की कठिन भाषा वैदिक धर्म की भाषा जनसामान्य की भाषा ना होकर विद्वानों की भाषा बन गई इसी वजह से नए सरल धर्मों का उदय हुआ।
- वैश्य धर्म के महत्व में वृद्धि लोहे के उपकरणों के प्रयोग से व्यापार वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला जिससे वैश्य वर्ग ने अपनी स्थिति संभाली और ब्राह्मणवाद का विरोध किया और अपनी नई जगह ढूंढी।
जैन धर्म
- jain dharm ke sansthapak kaun the -जैन धर्म की स्थापना का श्रेय प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ को जाना जाता है जिन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन आंदोलन का प्रवर्तन किया।
- प्रथम तीर्थंकर तथा 22वें तीर्थंकर अरिष्तनेमी का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है
- जैन अनुसूचियों के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर थे परंतु इनमें से 22 तीर्थंकरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर संदिग्धता है
- 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे इनके अनुयायियों को निरग्रंथ कहा जाता है। पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रत इस प्रकार है सत्य अहिंसा अपरिग्रह धन संचय का त्याग तथा अस्तेय चोरी ना करना
- पार्श्वनाथ ने नारियों को भी जैन धर्म में प्रवेश दिया तथा झारखंड के गिरिडीह जिले में सम्मेद पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया
- जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। (Jain Dharm ke antim tirthankar kaun the)
- उन्होंने एक संघ की स्थापना की जिसमें 11 अनुयाई थे यह गणधर कहलाते थे
- जैन धर्म में युद्ध और कृषि दोनों वर्जित हैं क्योंकि इसमें दोनों में ही जीवो की हिंसा होती है
- जैन धर्म में पुनर्जन्म और कर्म वाद में विश्वास रखता है उनके अनुसार कर्म के फल ही जन्म और मृत्यु का कारण बनते हैं
- आरंभ में जैन धर्म में मूर्ति पूजा नहीं थी किंतु बाद में मूर्ति पूजा शुरू हो गई।
Jain Dharm ka Logo
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएं jain dharm ke niyam
पंच महाव्रत अणुव्रत
- सत्य
- अहिंसा
- अपरिग्रह
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य
पांचवा व्रत ब्रम्हचर्य महावीर स्वामी ने जोड़ा था ।
अतिरिक्त तीन अणुव्रत
- दिग व्रत – दिशाओं में घूमने की मर्यादा
- अनर्थ दंडवत – पाप पैदा करने वाली वस्तुओं का त्याग करना
- भोगोपभोग – भोग्य पदार्थों के घेरे को निर्धारण
सात शील व्रत
- दिग व्रत – अपनी क्रियाओं को विशेष परि्थितियों में नियंत्रण रखना
- देश व्रत – अपना कार्य कुछ विशेष जगह तक सीमित रखना
- अनर्थ दंड – व्रत बिना कारण अपराध ना करना
- सामयिक – चिंतन के लिए कुछ समय निश्चित करना
- प्रोषधोपावस – शुद्धि के लिए उपवास
- उपभोग प्रतिभोग परिमाण – प्रतिदिन काम आने वाली वस्तुओं का नियंत्रण
- अथिति संविभाग – अतिथि को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करना
त्रिरत्न
- सम्यक दर्शन वास्तविक ज्ञान
- सम्यक ज्ञान सत्य में विश्वास
- सम्यक आचरण दुःख सुख के प्रति समभाव
जैन धर्म के दर्शन
- अनेकान्तवाद – बहु रूपता सिद्धांत
- नवा वद – आंशिक दृष्टिकोण का सिद्धांत
- स्यादवाद – सापेक्षता का सिद्धांत
- इसके अनुसार दृष्टिकोण की भिन्नता के कारण हरज्ञान विभिन्न स्वरूपों में व्यक्त किया जा सकता है इसी स्यादवाद कहते हैं।
जैन धर्म के ज्ञान
- मति इन्द्रिय जनित ज्ञान
- श्रुति – श्रवण ज्ञान
- अवधि – दिव्य ज्ञान
- कैवल्य – सर्वौच्च ज्ञान
- जब जीव में कर्म का भाव बिलकुल समाप्त हो जाये तो वह मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है जिसे कैवल्य कहते है।
- कैवल्य का नियम केवल संघ के सदस्यों के लिए है , सामान्य जन के लिए नहीं है।
- जैन धर्म वेद और ईश्वर की सत्ता को नकारता है।
- जैन धर्म में 18 पापों की कल्पना की गयी है।
जैन साहित्य Jain Dharm Ka Sahitya
- अब तक मिले जैन साहित्य केवल प्राकृत और संस्कृत भाषा में ही है। ( प्रांरभ में यह अर्ध मागधी भाषा में लिखा गया )
- जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जिसमे 12 अंग , 12 उपांग , 10 प्रकीर्ण आदि है।
- आचारांगसूत्र – जैन भिक्षओं के नियम
- भगवती सूत्र – महावीर जी का जीवन (इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख है )
- न्यायधम्म कहासुत्त – महावीर की शिक्षाओं का संग्रह
- भद्रबाहु चरित – चन्द्रगुप्त मौर्या के समय की घटनाएं
- कल्पसूत्र – भद्रबाहु द्वारा लिखित – तीर्थंकरों का जीवन चरित्र
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