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गांधीजी के प्रारंभिक सत्याग्रह Champaran, Kheda and Ahmedabad Satyagraha Chronology
Champaran andolan, Kheda Satyagrah, Ahmedabad Mill Satyagrah
Table of Contents
गांधीजी की भारत वापसी 1915
- गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका में उनके संघर्ष और उनकी सफलता ने उन्हें भारतीयों के बीच लोकप्रिय बना दिया था।
- उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु माना गोखले ने उनको शिक्षा दी “कान खुला रखें और मुंह बंद रखें 1 वर्ष तक।”
- भारत की तत्कालीन सभी राजनीतिक विचारधाराओं से गांधीजी सहमत नहीं थे यद्यपि होम रूल आंदोलन इस समय काफी लोकप्रिय था फिर भी वह गांधी जी के विचारों से मेल नहीं खाते थे।
- 1904 में फीनिक्स आश्रम की स्थापना डरबन में की
- प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तथा इन्हें सेना में भर्ती करने वाला सार्जेंट कहा जाने लगा
- 1915 में अंग्रेजों ने इन्हें केसर ए हिंद की उपाधि दी।
- साबरमती आश्रम /सत्याग्रह आश्रम 1915 में अहमदाबाद में स्थापित किया।और 1917 में साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित कर दिया।
- 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा
- इनको समाजवादियों में एक व्यक्ति वादी और समाजवादियों में एक मार्क्सवादी कहा जाता है और उन्होंने हिंसा के क्रूरतम रूप को गरीबी कहा। इन्हें दार्शनिक अराजकतावादी भी कहा गया। उपवास इनका अग्निबाण था जो सर्वाधिक प्रभाव कारी था।
गांधीजी के प्रारंभिक सत्याग्रह (Champaran, Kheda and Ahmedabad Satyagraha)
चंपारण आंदोलन /सत्याग्रह (1917) ( प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन)
- चंपारण (Champaran) का मामला काफी पुराना था गोरे बागान मालिकों ने किसानों से अनुबंध करा लिया था जिसके अंदर किसानों को अपनी भूमि के 3/20 हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य बना दिया गया था इसे तीन कठिया प्रथा कहते थे 19 वी सदी के अंत में जर्मनी में रासायनिक रंगों या डाई का विकास हो गया जिससे नील को बाजार से बाहर खदेड़ दिया गया। जिससे नील खेती अनावश्यक हो गई और किसानों की इस व्यवस्था का फायदा उठाने के लिए मालिकों ने अनुबंध मुक्त करने पर लगान और अन्य करो कि दरों में अत्यधिक वृद्धि कर दी
- चंपारण के प्रमुख आंदोलनकारी राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी को चंपारण (champaran satyagrah) बुलाने का फैसला किया।
- फलतः गांधीजी; राजेंद्र प्रसाद ,ब्रजकिशोर, जे बी कृपलानी आदि के सहयोग से मामले की जांच करने चंपारण पहुंचे वहां पहुंचते होने वापस जाने को कहा गया जिससे वह आंदोलन पर बैठे हैं किसी भी सरकार ने सारे मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया और गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया आयोग को गांधीजी का समझाने में सफल रहे कितनी घटिया पद समाप्त होनी चाहिए बाद में समझौते के आधार पर बागान मालिकों ने अवैध वसूली का 25% हिस्सा किसानों को दे दिया। इसके एक दशक के भीतर ही बागान मालिकों ने चंपारण छोड़ दिया , इस प्रकार पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन जीत लिया
- इसके सफल होने पर रविंद्र नाथ टैगोर ने गांधी को महात्मा की उपाधि दी
- एनजी रंगा ने इस आंदोलन का विरोध किया था।
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 1918 (प्रथम भूख हड़ताल)
- मिल मालिकों और मजदूरों के बीच प्लेग बोनस को लेकर विवाद मिल मालिक प्ले खत्म होने पर बोनस खत्म करना चाहते थे पर मजदूर यह नहीं चाहते थे उस समय गांधीजी ने यह देखकर 35 परसेंट बोनस की मांग की मिल मालिकों ने 20 परसेंट देने को बोला।
- गांधीजी ने मजदूरों को हड़ताल पर वापस जाने के लिए कहा।
- मामला ट्रिब्यूनल के पास गया और 35 पर्सेंट बोनस की बात हो गई।
- पूरे आंदोलन में अनसुईया बेन (अंबालाल साराभाई की बहन) सहयोगी रही।
- इसमें पहली बार भूख हड़ताल (ahmdabad mazdoor mill satyagrah) का प्रयोग किया गया।
खेड़ा सत्याग्रह 1918 (प्रथम असहयोग)
- वर्ष 1918 के भीषण अकाल के कारण गुजरात के खेड़ा (Kheda)जिले में पूरी फसल बर्बाद हो गई फिर भी सरकार ने किसानों से मालगुजारी वसूली जारी रखें राजस्व संहिता के अनुसार यदि फसल का उत्पादन कुल उत्पादन के एक चौथाई से भी कम हो तो किसानों का राजस्व पूरी तरह माफ कर दिया जाना चाहिए किंतु ऐसा नहीं हुआ
- खेड़ा जिले की युवा अधिवक्ता बल्लभ भाई पटेल और अन्य युवाओं ने गांधी जी के साथ खेड़ा के गांव का दौरा आरंभ किया उन्होंने किसानों को लगाना अदा करने की शपथ दिलाई गांधी जी ने घोषणा की कि यदि सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दे तो सक्षम किसान स्वेच्छा से लगान देंगे, दूसरी ओर सरकार ने लगान वसूली के लिए दमन का सहारा लिया कई स्थानों पर संपत्ति कुर्क कर दी गई
- अंततः सरकार ने किसानों के साथ एक समझौता किया उसने 1 वर्ष के लिए कर माफ कर दिया और आने वाले वर्षों में करों की दर कम करने का वचन दिया साथ में जप्त संपत्ति लौटा दी
- इस आंदोलन ने किसानों के बीच में एक नवीन जागरूकता का संचार किया
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