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पदोन्नति में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय Reservation In Promotion – UPSC Answer Writing (GS2)
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने महान्यायवादी को एम. नागराज मामले में वर्ष 2006 की संविधान पीठ द्वारा दिये गए निर्णय के खिलाफ किये गए फैसले की प्रयोज्यता के संबंध में राज्यों द्वारा उठाए जा रहे विभिन्न मुद्दों को संकलित करने के लिये कहा है।
पदोन्नति में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय (Reservation In Promotion)
यह निदेश-पत्र 7 न्यायाधीशों वाली खंडपीठ द्वारा केंद्र की एक याचिका पर दिया गया है, जिसमें प्रश्न किया गया है कि सरकारी पदोन्नति में आरक्षण (Reservation In Promotion) प्रदान करते समय SC/ST समुदाय के लिये क्रीमी लेयर लागू होना चाहिये या नही | न्यायालय ने एम. नागराज मामले में अनुसूचित जाति/अनसचित जनजाति समुदायों के सदस्यों की पदोन्नति में क्रीमी लेयर सिद्धांत के इस्तेमाल को बरकरार रखा था।
क्रीमी लेयर (Creamy Layer) – Indra sawhney Case (1992)
संभवतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘क्रीमी लेयर’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख इंद्रा साहनी मामले (1992) (Indra sawhney Case) में किया गया था। ‘क्रीमी लेयर’ शब्द का उपयोग एक पिछड़े वर्ग के कुछ सदस्यों का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो उस समुदाय के बाकी सदस्यों की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उन्नत हैं।
एम. नागराज मामला (2006) • इंद्रा साहनी मामले से अलग निर्णयः सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में SC/ST के लिये आरक्षण में क्रीमी लेयर अवधारणा को लागू करने के इंद्रा साहनी मामले (1992) में दिये गए अपने निर्णय (जिसमें उसने SC/ST को क्रीमी लेयर से बाहर रखा था, जबकि यह OBC पर लागू था) को पलट दिया।
राज्यों को निर्देश: पाँच जजों की बेंच ने नागराज मामले में 77वें, 81वें, 82वें और 85वें संवैधानिक संशोधनों की संवैधानिक वैद्यता को बरकरार रखा, जो पदोन्नति में SC/ST समुदायों के आरक्षण का प्रावधान करते हैं, लेकिन राज्यों को कुछ निर्देश भी दिये गए, जा इस प्रकार हैं:
राज्य पदोन्नति के मामले में SC/ST समुदाय को आरक्षण (Reservation) देने के लिये बाध्य नहीं है। यदि कोई राज्य पदोन्नति में SC/ST समुदायों को आरक्षण प्रदान करना चाहता है, तोउसे उस वर्ग के पिछड़ेपन की स्थिति को दर्शाते हुए मात्रात्मक डेटा एकत्र करना होगा जिसे वह आरक्षण प्रदान करना चाहता है। अनुच्छेद 335 का अनुपालन सुनिश्चित करने के अलावा राज्य को सार्वजनिक रोज़गार में उस वर्ग के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को दर्शाना होगा। राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके द्वारा 50% की आरक्षण-सीमा के प्रावधान या क्रीमी लेयर सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया गया है।
Supreme Court on resevation in promotion
अन्य संबंधित निर्णय – पदोन्नति में आरक्षण
- जरनैल सिंह बनाम एल. एन. गुप्ता (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने नागराज फैसले को एक उच्च पीठ को संदर्भित करने से इनकार कर दिया, परंतु बाद में यह कहकर अपने निर्णय को बदल दिया कि राज्यों को SC/ST समुदायों के पिछड़ेपन के मात्रात्मक डेटा प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
- पदोन्नति में आरक्षण (Reservation In Promotion) मौलिक अधिकार नहीं है: एम. नागराज मामले में अपने रुख की पुष्टि करते हुए वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सार्वजनिक पदों पर पदोन्नति के मामले में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है तथा किसी राज्य को इसे प्रदान करने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता है। केंद्र द्वारा वर्तमान मांग
- केंद्र ने न्यायालय से विभिन्न मुद्दों पर SC/ST को पदोन्नति में क्रीमी लेयर की अवधारणा को शुरू करने के अपने रुख की समीक्षा करने के लिये कहा पिछड़े वर्ग आरक्षण से वंचित हो सकते हैं: सरकार का मानना है कि ‘क्रीमी लेयर’ आरक्षण के लाभ से पिछड़े वर्गों को वंचित करने का एक तरीका बन सकता है।
- पिछड़ेपन की स्थिति को पुनः साबित करने की निरर्थकता: यह माना जाता है कि एक बार जब उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत ‘प्रेसिडेंशियल लिस्ट’ में जोड़ दिया गया है तो फिर से SC/ST को पिछड़ा साबित करने का कोई सवाल ही नहीं है।
- अनुच्छेद 341 और 342 के तहत उक्त सूची को संसद के अलावा किसी अन्य द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता हैयह परिभाषित करना कि किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में किसे SC/ST के रूप में माना जाएगा।
आरक्षण में पदोन्नति के लिये संवैधानिक प्रावधान Constitutional Terms About Reservation in Promotion
अनुच्छेद 16(4): इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
अनुच्छेद 16(4A): इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य सरकारें SC/ST के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। धारा 4A को 77वें संवैधानिक संशोधन द्वारा वर्ष 1995 में शामिल किया गया था।
अनुच्छेद 16(4B): धारा 4B को 81वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा जोड़ा गया, जिसमें एक विशेष वर्ष के रिक्त SC/ST कोटे को अगले वर्ष के लिये स्थानांतरित कर दिया गया।
अनुच्छेद 335: इस अनुच्छेद के अनुसार, सेवाओं व पदों को लेकर SC और ST के दावों पर विचार करने हेतु विशेष उपायों को अपनाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें बराबरी के स्तर पर लाया जा सके।
82वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 ने अनुच्छेद 335 में एक शर्त सम्मिलित की जो राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के पक्ष में कोई प्रावधान करने में सक्षम बनाती है।
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