मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की एकता कुछ समय के लिए खत्म हो गई क्योंकि ऐसा कोई राजवंश नहीं था जिसका अधिपत्य भारत के एक प्रभावशाली इलाके तक रहे। मौर्य साम्राज्य के बाद कई सारे राज्य उदय हुए जिसमें प्रमुख शुंग वंश था
शुंग वंश के संस्थापक कौन थे (shunga dynasty founder)
पुष्यमित्र शुंग
Shunga Vansh /Dynasty शुंग वंश
पुष्यमित्र शुंग
- मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था जिसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग था इसने बृहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की (185 ईसा पूर्व)
- पुष्यमित्र शुंग एक कट्टरवादी ब्राह्मण था
- बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में पुष्यमित्र को अनार्य कहा है lपपुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया (धनदेव की अयोध्या अभिलेख के अनुसार) जिसमें पुरोहित पतंजलि थे पतंजलि पुष्यमित्र के राजपुरोहित थे
- यह बौद्ध धर्म के अत्याचार करता था इसने बुद्ध विहारओं को नष्ट किया तथा बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की इसीलिए प्रतीत होता है कि यह बौद्ध विरोधी था लेकिन भरहुत सूप बनाने का श्रेय पुष्यमित्र को ही दिया जाता है।
पुष्यमित्र शुंग का विजय अभियान
पुष्यमित्र शुंग के शासन में कई आक्रमणकारियों के द्वारा भारत पर आक्रमण हुए पुष्यमित्र के राजा बन जाने पर मगध साम्राज्य को बहुत शक्ति मिले जो पहले से मगध के अधीन थे उन्हें पुष्यमित्र ने फिर से अपने अधिकार में कर लिया और अपने विजय अभियान उसे सीमा में विस्तार किया।
विदर्भ बरार की विजय
विदर्भ का शासक यज्ञ सेन था वह महलों की तरफ से वहां का शासक नियुक्त हुआ था परंतु मगध साम्राज्य के बिखर जाने के बाद उसने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित किया यज्ञ सैनी पुष्यमित्र शुंग को स्वाभाविक शत्रु बताया पुष्यमित्र ने अग्नि मित्र को भेजकर विदर्भ पर आक्रमण किया और उसे अपने अधीन कर लिया।
कालिदास के प्रसिद्ध नाटक मालविकाग्निमित्रम् ने यज्ञ सेन की चचेरी बहन और अग्नि मित्र के प्रेम का और विदर्भ विजय का वृतांत है।
खारवेल से युद्ध
मौर्य वंश के अंतिम काल में ही कलिंग देश स्वतंत्र हो गया था वहां का राजा खारवेल था पुष्यमित्र शुंग ने उसे हराकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। इसका वर्णन हाथीगुंफा अभिलेख में है।
पुष्यमित्र शुंग का समकालीन यवन शासक डिमेटरियस था।
पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी – शुंग वंश का पतन
पुष्यमित्र की मृत्यु के पश्चात का पुत्र अग्नि मित्र गद्दी पर बैठा इसके बाद वसु जेष्ठ वसुमित्र पुलिंदक आदि राजाओं का वृतांत मिलता है।
शुंग वंश का अंतिम शासक – देवभूति इस वंश का अंतिम शासक था इसके मंत्री वसुदेव ने देवभूति की हत्या कर एक नए वंश (कण्व वंश) की स्थापना की।
शुंग काल में साहित्य एवं कला
शुंग काल में बनाई हुई कुछ कलाएं निम्न है
- विदिशा का गरुड़ स्तंभ
- भाजा का चैत्य एवं विहार
- अजंता का नवा चैत्य मंदिर
- नासिक एवं कार्ले के चैत्य
- शुंग काल में संस्कृत और हिंदू धर्म का बोलबाला हुआ विदिशा का राजनैतिक महत्व सर्वाधिक हो गया हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान था।
- इस काल में ही भागवत धर्म का उदय एवं विकास हुआ। वासुदेव कृष्ण की उपासना भी शुरू हुई।
- मौर्य काल में स्तूप मिट्टी और ईंटो के बनते थे परंतु शुंग काल में पत्थर का प्रयोग किया गया है।
- मनुस्मृति के वर्तमान स्वरूप की रचना इसी युग में हुई।
- शुंग काल में , ब्राह्मण धर्म और वैदिक धर्म का पुनर्जागरण माना जाता है।
शुंग वंश की स्थापना के साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत
- वायु पुराण और मत्स्य पुराण से पता चलता है शुंग वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की।
- बाणभट्ट ने जो हर्ष चरित्र लिखी थी उससे अंतिम शासक बृहद्रथ की चर्चा है इससे पता चला कि पुष्यमित्र ने ब्रहद्रथ की हत्या की।
- पतंजलि पुष्यमित्र के पुरोहित जिन्होंने महाभास्य से लिखी इसमें यवनों के आक्रमण की चर्चा है।
- गार्गी संहिता में भी यवन आक्रमण का उल्लेख है
- दिव्य वदान में पुष्यमित्र को अशोक के 84000 स्तूपों को तोड़ने वाला बताया गया है।
- अयोध्या अभिलेख में दो अश्वमेध यज्ञ की चर्चा है
- बेसनगर के अभिलेख में भागवत धर्म की लोकप्रियता का पता चलता है या अभिलेख यवन राजदूत होलियो डोरस का है।