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सहायक संधि तथा व्यपगत नीति-हड़प नीति – Subsidiary Alliance and Doctrine of LAPSE
भारत में ब्रिटिश शक्ति का विस्तार
भारत में ब्रिटिश शक्ति का विस्तार 5 लोगों ने किया
लॉर्ड क्लाइव, वारेन हेस्टिंग्स, कार्नवालिस, वेलेजली, डलहौजी |
Subsidiary Alliance and Doctrine of LAPSE in hindi
क्लाइव में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव डाली
वारेन हेस्टिंग्स ने नींव को मजबूत किया
कार्नवालिस ने इमारत खड़ी करना प्रारंभ किया
वेलेजली ने उस इमारत को पूरा किया
तथा बाद के गवर्नर ने कार्य समाप्त किया ।
इन्होंने प्रमुख तीन नीतियां अपनाई
लॉर्ड क्लाइव का द्वैध शासन (Diarchy)
प्लासी के बाद द्वैध शासन शुरू किया गया, क्यूंकि खतरा था –
- अगर यह सीधे सत्ता हाथ में लेते तो लोगों के सामने इनका असली चेहरा सामने आ जाता |
- अन्य विदेशी कंपनियां टैक्स देने को मना कर सकती थी
- इंग्लैंड के संसद की हस्तक्षेप का
- कृषि एवं उद्योग धंधों का पतन हो सकता था
- 1772 में वारेन हेस्टिंग्स में द्वैध शासन को खत्म कर दिया
- ब्रिटिश इतिहासकार पर Thomas George Percival Spear ने इसे “निर्लज्जपूर्ण लूट” कहा |
लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि (Subsidiary Alliance)
- वेलेजली ब्रिटिश कंपनी को सर्वोच्च शक्ति बनाना चाहता था |
- फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने सर्वप्रथम सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया |
- इस का सामान्य अर्थ होता है दो या अधिक शक्तियों के बीच सुरक्षा समझौता, भारत के संदर्भ में सहायक संधि का अर्थ बदल जाता है विवशता पूर्ण श्रेष्ठ से समझौता करना एवं संप्रभुता का हनन होने देना |
- प्रथम सहायक संधि अवध के नवाब से सहायता के बदले धन से शुरू हुई परंतु वास्तविक शुरुआत 1798 हैदराबाद से शुरू होती है।
प्रवर्तित सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्य हैं
- Hyderabad (हैदराबाद) 1798 ,1800
- Mysore (मैसूर ) 1799
- Tanjore (तंजौर) 1799
- Avadh 1801
- Barar ke Bhosle 1803
- Sindhiya 1804
- Jodhpur
- Jaipur
- Macheri
- Bundi
- Bharatpur
इंदौर के होल्करों ने यह नीति स्वीकार नहीं की ।
- कंपनी की स्वीकृति के बिना दुश्मन राज्य के व्यक्ति को शरण नहीं मिलेगी
- बिना अनुमति के युद्ध संधि या मैत्री नहीं कर सकते थे
- कंपनी राज्य में सेना रखेगी और सेना का खर्च राज्य उठाएगा
- शासन प्रबंधन के लिए दरबार में एक ब्रिटिश रेजिडेंट होगा
- नरेशओं के आंतरिक शासन में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा तथा बाहरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा दी जाएगी।
इससे फ्रांसीसी प्रभाव समाप्त हो गया और अब भारत के राज्य कोई संघ नहीं बना सकते थे
भारत के शासक सिर्फ नाम मात्र के शासक रह सकते रह गए थे और धन की मांग करते करते दिवालिया हो गए थे इससे हस्तशिल्प उद्योग का पतन हो गया क्योंकि भारतीय शासक ही खरीददार एवं संरक्षक थे
थॉमस मुनरो ने कहा “देसी रियासतों ने अपनी स्वतंत्रता, राष्ट्रीय चरित्र एवं जो भी देश को श्रेष्ठ बनाते थे उन सब को बेचकर सुरक्षा मोल ले ली।“
डलहौजी की व्यपगत नीति “हड़प नीति” (Doctrine of LAPSE 1848-56)
- यह काल इतिहास का महत्वपूर्ण काल था क्योंकि सक्रिय प्रशासक थे।
- जिस प्रकार से संभव हो , ब्रिटिश शक्ति का विस्तार किया जाए ।
- कोई भी सुरक्षा प्राप्त राज्य का शासक बिना स्वाभाविक उत्तराधिकारी के मर जाए , तो दत्तक पुत्र शासन नहीं करेगा ।
- भारत में गोद लेने की परंपरा प्राचीन काल से विद्यमान थी ।
हड़प नीति का क्रियान्वयन शक्ति के आधार पर
- सतारा 1848 (दत्तक पुत्र को अमान्य घोषित किया)
- जैतपुर और संबलपुर 1849
- बघाट 1850
- उदयपुर 1852
- झांसी 1853
- नागपुर 1854