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बिमल जालान समिति
संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचे, जिसके तहत RBI ने सरकार को ₹ 52,637 करोड़ के अतिरिक्त प्रावधानों को हस्तांतरित करने का फैसला लिया है, की प्रत्येक पाँच वर्ष की अवधि पर समीक्षा की जाएगी। इसके बावजूद अगर RBI के जोखिमों और संचालन संबंधी व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव आता है तो एक मध्यवर्ती समीक्षा पर विचार किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- 26 दिसंबर, 2018 को बिमल जालान समिति का गठन यह सुझाव देने के लिये किया गया था कि RBI के पास कितना रिज़र्व होना चाहियेऔर उसे केंद्र सरकार को कितना लाभांश देना चाहिये। समिति को इस बारे में वैश्विक स्तर पर अपनाए जाने वाले व्यवहार का अध्ययन करने और यह सिफारिश देने को कहा गया कि क्या केंद्रीय बैंक के पास आरक्षित कोष और बफर पूंजी आवश्यकता से अधिक है।
- RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है। समिति ने RBI ने रिजर्व के स्थानांतरण का समर्थन किया है। RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा सरकार को रिकार्ड ₹ 1.76 लाख करोड़ के लाभांश और अधिशेष भंडार के हस्तांतरण की मंजूरी दी गई है। इसके तहत वर्ष 2018-19 के लिये सरकार को ₹1,23,414 करोड़ अधिशेष क रूप में और संशोधित ECF के तहत आने वाले अतिरिक्त प्रावधानों के रूप में ₹52.637 करोड़ दिये जाएंगे।
अन्य महत्त्वपूर्ण सिफारिशें –
- पैनल की रिपोर्ट, जो केंद्रीय बैंक ने जारी की थी, की सिफारिश के अनुसार 2020-21 से RBI लेखा वर्ष (जुलाई-जून) को वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) के साथ समायोजित किया जा सकता है। इस समायोजन से RBI द्वारा भुगतान किये जाने वाले अंतरिम लाभांश की आवश्यकता में कमी आएगी। गौरतलब है कि 2018-19 के लिये सरकार को RBI द्वारा आंतरिक लाभांश के रूप में ₹1,23,414 करोड़ में से ₹ 28,000 करोड़ का भुगतान इस वर्ष मार्च में किया जा चुका है। समिति द्वारा अधिशेष वितरण नीति (Surplus Distribution Policy) के निर्माण का सुझाव भी दिया गया है जो कुल आर्थिक पूंजी (Total Economic Capital) के साथ-साथ RBI की पूंजी के रियलाइज्ड इक्विटी लेवल (Realized Equity Level) को भी लक्षित करेगी। इससे सरकार को अधिशेष हस्तांतरण के संबंध में अधिक स्थिरता लाने में मदद मिलेगी।
सरप्लस डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी के अनुसार, वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) के आवश्यकता से अधिक होने पर पूरी शुद्ध आय सरकार को हस्तांतरित कर दी जाएगी। समिति द्वारा आर्थिक पूंजी के दो घटकों- वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) और पुनर्मूल्यन शेष (Revaluation Balances) केबीच एक स्पष्ट अंतर किये जाने की बात भी कही गई है। – समिति की अनुशंसा के अनुसार वसूल की गई इक्विटी का उपयोग प्राथमिक जोखिमों को पूरा करने के लिये किया जाएगा क्योंकि यह आय का मुख्य साधन है। इसके अतिरिक्त पुनर्मूल्यन शेष को केवल बाज़ार जोखिमों के लिये जोखिम बफर के रूप में रखने की बात कही गई क्योंकि वे सत्यापित मूल्यांकन लाभ नहीं होते। रिस्क प्रोविज़निंग (Risk Provisioning) राशि, जिसे आकस्मिक जोखिम बफर (Contingent Risk Buffer-CRB) भी कहा जाता है, को RBI की बैलेंस शीट के 6.5% से 5.5% के बीच बनाए रखा जाए। 6.5% से 5.5% वाले CRB मानक के तहत 5.5% से 4.5% मौद्रिक तथा वित्तीय स्थिरता जोखिम एवं 1.0% क्रेडिट तथा परिचालन जोखिम के लिये तय किया गया है। विवाद की पृष्ठभूमि । वर्ष 1935 में भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना के समय इसमें निजी भागीदारी की अनुमति थी परंतु वर्ष 1949 में भारतीय रिज़र्व बैंक के राष्ट्रीयकरण के बाद से यह पूर्णतः सरकार के अंतर्गत कार्य करने लगा। भारतीय रिजर्व बैंक अपने अधिशेष वित्त (Surplus Fund) का प्रयोग किसी तात्कालिक और भविष्य संबंधी जोखिमों के लिये करता है लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के तहत सरकार RBI के इस अधिशेष वित्त का उपयोग कर सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले तीन वर्षों के दौरान 8.2% से घटकर 6.8% रह गई है। साथ ही RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, 2019 की पहली तिमाही में यह विकास दर पिछले 5 वर्षों की तुलना में सबसे कम (5.8%) दर्ज की गई। केंद्र सरकार RBI से प्राप्त इस अधिशेष वित्त का उपयोग सार्वजनिक ऋण चुकाने तथा बैंकों में पूंजी डालने हेतु करना चाहती थी ताकि बिना राजकोषीय घाटा बढाएँ धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिल सके, परंतु RBI द्वारा इसके स्वायतता संबंधी मुद्दों को लेकर विरोध प्रकट किया गया। केंद्र सरकार को अधिशेष वित्त के हस्तांतरण संबंधी मुद्दों पर सुझाव देने के लिये बिमल जालान समिति गठित की गई थी, जिसे आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा का कार्य सौपा गया। नोट: आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क का तात्पर्य केंद्रीय बैंक (RBI) के पास रखी गई आवश्यक जोखिम पूंजी से है। केंद्रीय बैंक इस पूंजी के माध्यम से भविष्य के अप्रत्याशित जोखिम, घटना या नुकसान के खिलाफ स्वयं | को संरक्षित करता है।
सरकार का पक्ष
भारत में मंदी के कारण आर्थिक गतिविधियाँ धीमी हुई हैं, साथ ही रोज़गार के अवसरों में भी कमी आई है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक स्थान छठे से सातवाँ हो गया है। – इस समय देश में एक तरफ जहाँ रियल एस्टेट सेक्टर और विनिर्माण सेक्टर वित्त की कमी से संबंधित समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑटोमोबाइल सेक्टर में मांग में कमी के कारण हज़ारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं।
ऑटोमोबाइल सेक्टर में जहाँ वित्त की कमी के कारण विनिर्माण गतिविधियाँ सुचारू रूप से संचालित नहीं हो पा रही हैं, वहीं दूसरी ओर बाज़ार में मुद्रा की तरलता कम होने के कारण लोगों के पास पैसों की कमी हो गई है जिससे बाजार में उत्पादों की बिक्री में कमी आई है। – मार्केट रिसर्च कंपनी नील्सन के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या खर्च में कमी बताई गई है। – केंद्र सरकार बैंकिंग व्यवस्था में रिकैपिटलाइजेशन के माध्यम से वित्त की आपूर्ति करना चाहती है ताकि आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाई जा सके। . उपरोक्त कारणों के परिप्रेक्ष्य में सरकार अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता बढ़ाकर मंदी की स्थिति को खत्म करते हए देश में रोजगार और आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाना चाहती है जिसके लिये उसे अतिरिक्त वित्त की आवश्यकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि सरकार RBI के 25 फीसदी के सरप्लस रिज़र्व को घटाकर 14 फीसदी मानदंड पर लाना चाहती है। – केंद्रीय बैंक सरकार को अधिशेष वित्त का हस्तांतरण करना उचित नहीं मानता क्योंकि बेसल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के पालन के साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था के जोखिमों की प्रतिपूर्ति करना भी उसके दायित्वों में आता है। लेकिन वित्त के अभाव में उसकी कार्य निष्पादन क्षमता प्रभावित होगी। गौरतलब है कि केंद्रीय बैंक पर अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की प्रभावशीलता में कमी लाने संबंधी ज़िम्मेदारी होती है। वर्तमान समय में वैश्विक संरक्षणवादी नीतियों और करेंसी वार जैसी स्थितियों को देखते हुए RBI के पास पर्याप्त वित्त का होना अतिआवश्यक है। भारत के विपरीत चीन जैसे देशों में केंद्रीय बैंकों द्वारा पर्याप्त वित्त संरक्षित किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के सापेक्ष भारतीय रुपए की परिवर्तनीयता भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। चूँकि मुद्रा परिवर्तनीयता से आयात-निर्यात भी प्रभावित होता है, इसलिये केंद्रीय बैंक के पास इन परिस्थितियों से निपटने हेतु पर्याप्त वित और स्वायत्तता का होना आवश्यक है। चीन आदि देशों में ऐसी स्थिति से निपटने हेतु केंद्रीय बैंकों के पास डॉलर की पर्याप्त आपूर्ति रहती है।
इस प्रकार के वित्त के प्रयोग से संबंधित नीतियों के निर्माण में केंद्रीय बैंक को शामिल करना बेहतर विकल्प हो सकता है। चूँकि भारत सरकार आर्थिक विकास हेतु बचत रणनीति के बजाय खर्च की रणनीति पर जोर दे रही है। अतः इसके लिये पर्याप्त वित्त की आपूर्ति की जानी चाहिये। भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने हेतु और वर्तमान आर्थिक मंदी तथा बेरोज़गारी के दुष्चक्र से निकलने हेतु अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढाना ज़रूरी है। लेकिन साथ ही __ भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता भी आवश्यक है, अतः दोनों स्थितियों के सामंजस्य से ही बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।