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Congress ka Lucknow adhiveshan/Samjhauta -Lucknow Pact UPSC
कांग्रेस का लखनऊ समझौता 1916 में हुआ यह समझौता कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में हुआ था जिसकी अध्यक्षता अंबिका चरण मजूमदार ने । की यह एक ऐतिहासिक अधिवेशन साबित हुआ ।
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कांग्रेस का लखनऊ समझौता Lucknow Pact in Hindi
इस अधिवेशन की दो प्रमुख उपलब्धियां रहीं –
गरम दल का कांग्रेस में पुनः प्रवेश
नरमदल और और गरम दल ने जा महसूस किया कि विभाजन से राष्ट्रीय आंदोलन की प्रक्रिया रुक रही है तथा अब पुराने विवाद भी अर्थहीन रह गए थे इसलिए दोनों ने समझौता करना सही समझा एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने इस समझौते में सराहनीय प्रयास किए।
गोपाल कृष्ण गोखले और फिरोजशाह मेहता दोनों की मृत्यु हो गई क्योंकि यह उदारवादी नेता थे और गरम दल के घोर विरोधी में थे तो अब यह भी एक कारण समझौते का था।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग में लखनऊ समझौता
कांग्रेस के लखनऊ समझौते की एक अन्य ऐतिहासिक उपलब्धि थी कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच में समझौता हो गया तथा दोनों ने सरकार के समक्ष अपनी मांगे प्रस्तुत की इससे साम्राज्यवाद विरोधी गतिविधियों ने गति पकड़ी।
मुस्लिम लीग के रवैए में परिवर्तन कैसे हुआ?
- 1912 के बाल्कन युद्ध में Britain ने तुर्की तुर्की को मदद देने से इंकर कर दिया जिससे तुर्की की शक्ति कम हो गई। तुर्की उस समय सभी मुसलमानों का खलीफा कहलाता था तो भारत के मुसलमानों की सहानुभूति तुर्की की तरफ ही थी , ब्रिटेन द्वारा सहायता ना दिए जाने पर भारत के मुसलमान भी ब्रिटेन के विरुद्ध हो गए।
मुसलमानों ने बंगाल विभाजन का पुरजोर समर्थन किया था किंतु बंगाल विभाजन रद्द किए जाने पर यह निराश हो गए।
- ब्रिटिश सरकार ने अलीगढ़ की मुस्लिम यूनिवर्सिटी को सहायता देने से इनकार कर दिया।
- मुस्लिम लीग के अंदर ही युवा स्वशासन की ओर उन्मुख हो रहे थे लीग के 1912 के अधिवेशन में इन्होंने यह निश्चय किया कि वह अन्य संगठन के साथ समझौता करेंगे बशर्ते वह मुस्लिमों के हित सुरक्षित रखें।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सरकार ने जो बर्बरता दिखाई उससे मुस्लिम मुस्लिम समुदाय में भय फैल गया उसी समय मौलाना अबुल कलाम आजाद के पत्र अल हिलाल और मोहम्मद अली के कॉमरेड को भी सरकारी बर्बरता सहनी पड़ी।
लखनऊ समझौते के क्या प्रावधान थे?
- कांग्रेस की उत्तरदाई शासन की मांग को मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया।
- कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की प्रथक निर्वाचन व्यवस्था को मान लिया।
- प्रांतीय प्रांतीय व्यवस्थापिका में मुस्लिमों का एक निश्चित भाग तय कर दिया गया जोकि पंजाब में 50%, बंगाल में 40%, मुंबई में 33% और यूपी में 30% थी।
- केंद्रीय व्यवस्थापिका में निर्वाचित कुल भारतीयों का 1 / 9 भाग मुस्लिमों के लिए आरक्षित कर दिया गया तथा इनके चुनाव के लिए सांप्रदायिक चुनाव व्यवस्था स्वीकार की गई ।
- यह भी कहा गया कि यदि किसी सभा में कोई प्रस्ताव किसी संप्रदाय के विरुद्ध हो तो 3/4 सदस्य उस आधार पर उसका विरोध करें तो वह निरस्त कर दिया जाएगा।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपनी संयुक्त मांगे कुछ इस तरह रखीं
- सरकार भारत को उत्तरदाई शासन देने की शीघ्र घोषणा करें।
- प्रांतीय व्यवस्थापिका में भारतीयों की संख्या बढ़ाई जाए और उनको ज्यादा अधिकार भी दिए जाएं।
- वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में ज्यादा से ज्यादा भारतीय होने चाहिए।
- भारत के सचिव का वेतन ब्रिटिश ट्रेजरी से होना चाहिए ना कि भारतीय ट्रेजरी से।
कांग्रेस के लखनऊ समझौते की समालोचना (Pro and Cons of Lucknow Pact)
कांग्रेस का लखनऊ समझौता तो हो गया और एक संयुक्त मोर्चा भी बन गया, परंतु समझौते के प्रावधानों के निर्धारण में दूरदर्शिता का पूर्ण अभाव दिखा। कांग्रेस के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था स्वीकार कर लिए जाने से द्विराष्ट्र सिद्धांत की अवधारणा सार्थक रूप में दिखने लगी । इस समझौते के पश्चात हिंदू और मुसलमानों को को साथ लाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
अगर विवादास्पद प्रावधानों को हटा दिया जाए तो कांग्रेस के लखनऊ समझौते से यह लाभ हुआ कि मुसलमानों के मन से हिंदुओं का भय दूर हो गया और यह मानने लगे कि अब उन्हें हिंदुओं से करने की जरूरत नहीं है अर्थात उनके हित सुरक्षित हैं। तथा इस समझौते से भारतीयों में एकता और समानता की नई भावना भी पैदा हुई और इससे ब्रिटिश सरकार पर भी पर भी इसका असर पड़ा और इन्होंने 1917 में मोंटेग्यू घोषणाएं की ।