Welcome to Exams ias
भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास Development of Education in Modern India
ब्रिटिश शासन ने भारत में नीतियां क्रियान्वित की इसका कारण भारत में सत्ता बनाए रखना था किंतु इससे भारत में राजनैतिक चेतना का विकास हुआ जो एक महत्वपूर्ण घटना थी। भारत में British अंग्रेजी का प्रचार चाहते थे यह भाषा जन भाषा तो नहीं करनी लेकिन संपर्क भाषा के रूप में अवश्य स्थापित हो गई।
Lord Litan (1876-1880) ने भारत के हितों के विरुद्ध उल्लेखनीय कदम उठाएं।
- भारतीय शस्त्र अधिनियम 1878 Arms act के द्वारा भारतीयों को निश्चित कर दिया,
- वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 के द्वारा समाचार पत्रों पर कठोर नियंत्रण किया तथा
- सिविल सर्विस की परीक्षा केवल इंग्लैंड में आयोजित करना शुरू कर दिया और इसकी आयु सीमा घटाकर 21 से 19 वर्ष कर दिया।
इन सभी कदमों से जनता में रोष बड़ा इससे राजनैतिक चेतना भी बड़ी।
Table of Contents
भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास
- प्रारंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी और प्रारंभ के शिक्षा के सभी प्रयास व्यक्तिगत थे
- वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 में अरबी और फारसी भाषा के अध्ययन के लिए कोलकाता मदरसा की स्थापना की।
- 1784 में सर विलियम जोंस में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की जो कोलकाता में थी इसमें प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन हेतु योगदान दिया। विलियम जोंस ने ही अभिज्ञान शाकुंतलम् का अंग्रेजी अनुवाद किया जो कालिदास द्वारा रचित थी।
- चार्ल्स विलकिंस में भगवत गीता का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन किया।
- 1791 में जोनाथन डंकन के प्रयास से बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना हुई।
- 1800 ईस्वी मैं लॉर्ड बिजली के द्वारा कंपनी के असैन्य अधिकारियों की शिक्षा के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की जो कोलकाता में था।
इन सभी का प्रयास किया था भारतीय शिक्षा पद्धति पद्धति को ऐसे सांचे में डाला जाए जिससे कंपनी के लिए शिक्षक और वफादार वर्ग निकले और जो स्थानीय भाषा के लिए अच्छे ज्ञाता हो।
- ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक में प्रयास 1813 के अधिनियम के तहत शुरू किया गया इसके तहत गवर्नर जनरल को यह अधिकार मिला कि वह ₹100000 से भारतीय साहित्य का उद्धार और विद्वानों को प्रोत्साहन दे सकते थे, तथा साथ ही विज्ञान व दर्शन की शिक्षा पर खर्च कर सकते थे। इसका कारण यह था कि ब्रिटिशर्स को छोटे प्रशासनिक पदों पर भारतीयों की आवश्यकता थी।
- 1817 में Raja rammohan Rai और डेविड हेयर के प्रयासों से हिंदू कॉलेज कोलकाता की स्थापना हुई जो पाश्चात्य उच्च शिक्षा देने का प्रथम कॉलेज था।
- इसके अतिरिक्त कोलकाता आगरा और बनारस में 3 संस्कृत कालेजों की स्थापना हुई।
आंग्ल प्राच्य विवाद
सामान्य logoin ki शिक्षा के लिए 10 सदस्यों की समिति बनाई गई पर यहां दो गुट में बंट गए, एक प्राच्य शिक्षा का समर्थक था तथा दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक।
प्राच्य शिक्षा | आंग्ल शिक्षा |
प्राच्य शिक्षा समिति के लोगो के सचिव H.T. Princep बने । इसका समर्थन समिति के मंत्री H.H. Wilson ने भी किया। उनका यह तर्क था की यहां रोजगार के अवसरों में वृद्धि के लिए परंपरागत भारतीय भाषाएं सही होंगी और पाश्चात्य ज्ञान के आने से भारतीय संस्कृति का विनाश हो जाएगा। | पाश्चात्य शिक्षा शिक्षा का नेतृत्व मुनरो और एलफिंस्टन ने किया इसका समर्थन लॉर्ड मैकाले ने भी किया उनका यह तर्क था कि पुराने शिक्षा पद्धति मरने के करीब है और इस को जीवित करना संभव नहीं है यह रूढ़िवादी भाषाएं हैं। |
बढ़ते विवाद को देखकर तात्कालिक ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने अपनी काउंसिल के सदस्य लॉर्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रधान नियुक्त किया तथा उन्हें अपना विवरण देने को कहा।
2 फरवरी 1835 को लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी दल का समर्थन किया और कहा –
यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की अलमारी का एक कमरा भारत एवं अरब के समस्त साहित्य से ज्यादा मूल्यवान है।
लॉर्ड मैकाले
मैकाले के बारे में कहा जाता है कि उसे काली चमड़ी में अंग्रेजों का एक वर्ग चाहिए था।
मैकाले के इस विवरण को मानते हुए बेंटिक ने आदेश दिया कि भविष्य में सरकार की समस्त नीतियां अंग्रेजी माध्यम को दिमाग में रखते हुए ली जाएंगी और सभी खर्च इसी उद्देश्य से होंगे।
शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत
- इस सिद्धांत का तात्पर्य यह था कि शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को ही मिले जिससे या शिक्षा छन छन कर जनसाधारण को पहुंचे जिससे यह उपयुक्त स्थान पर बनी रहेगी।
- अंग्रेजों की यह नीति असफल साबित हुई क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता था और अपने कार्य को करने में असफल रहता था।
- किंतु अंग्रेजी कॉलेज में पढ़ने वाला व्यक्ति की विचारधारा में बदलाव हुआ और वहां देश के लोगों की अवहेलना करने लगा।
वुड्स घोषणा पत्र Wood’s dispatch (1854) UPSC
भारत में शिक्षा के विकास का दूसरा चरण लॉर्ड डलहौजी के समय से शुरू हुआ बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड ने भारत में आने वाली शिक्षा नीति की विस्तृत योजना बनाई इसको भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है,
- आम व्यक्ति की शिक्षा का दायित्व स्वयं उस व्यक्ति पर ही होगा।
- यह बताया गया कि गांव में स्थानीय भाषाओं के लिए प्राथमिक स्कूल स्थापित किए जाएं और जिला स्तर पर आंग्ल देसी भाषा में हाई स्कूल खोले जाए तथा तीनों प्रेसिडेंसी मुंबई कोलकाता और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किए जाए।
- उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होना चाहिए तथा स्कूली स्तर की शिक्षा देसी और स्थानीय भाषाओं में कराई जाए।
- इसने सुझाव दिया कि स्त्री शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए।
- निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रांट इन एड की पद्धति चलाई जाए।
- यह सुझाव यह सुझाव दिया गया की सरकारी शिक्षा धर्मनिरपेक्ष हो ।
- इस बात की भी घोषणा की गई कि सरकार की शिक्षा नीति का उद्देश्य पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा देना है।
1857 में कोलकाता कोलकाता और मद्रास विश्वविद्यालय खोले गए, स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा परिणाम तब दिखा जब जे ई डी बेथून द्वारा 1849 में कोलकाता में बेथुन स्कूल की स्थापना की गई इसी काल में बिहार में कृषि संस्थान तथा रुड़की में इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई इसके द्वारा बनाई गई विधियां लगभग 40 से 50 वर्षों तक प्रभावी रही।
हंटर शिक्षा आयोग Hunter Commission Report (1882-1883) UPSC
- प्रारंभ की योजनाओं में माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा की उपेक्षा कर दी गई और इन पर अपेक्षित व्यय नहीं हुआ 1882 में अंतर हंटर आयोग बनाया गया जिसका कार्य 1,854 के पश्चात देश में शिक्षा के लिए किए गए प्रयासों और प्रगति की समीक्षा करना था इसका कार्य विश्वविद्यालय से संबंधित नहीं था सिर्फ प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का आकलन करना ही इस आयोग का उद्देश्य था।
- सरकार को प्राथमिक शिक्षा के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए यह शिक्षा स्थानीय भाषा में होनी चाहिए।
- इस आयोग ने सुझाव यह दिया कि माध्यमिक शिक्षा के दो भाग होने चाहिए , पहला साहित्यिक तथा दूसरा व्यावहारिक।
- आयोग ने स्त्री शिक्षा के लिए स्त्री शिक्षा के लिए विशेष प्रबंध ना होने के कारण खेद व्यक्त किया।
- इन सुझावों के बाद में अगले 20 वर्षों तक कॉलेज एवं माध्यमिक शिक्षा का विकास अच्छी गति से हुआ तथा इसमें भारतीयों ने भी अच्छा योगदान दिया इसमें पंजाब विश्वविद्यालय 1882 और इलाहाबाद विश्वविद्यालय 1887 मुख्य माने जा सकते हैं।