खिलाफत और असहयोग आंदोलन Khilafat Movement India in Hindi

  • 1919 से 1922 के मध्य दो सशक्त जन आंदोलन (Khilafat Movement & Non coparation Movement) चलाए गए हालांकि यह दोनों आंदोलन प्रथक प्रथक मुद्दों पर प्रारंभ हुए थे किंतु दोनों ने ही संघर्ष के एक ही तरीके अहिंसक सहयोग के मार्ग को अपनाया।
  • प्रथम विश्व युद्ध, आर्थिक कठिनाइयां, सूखा, रौलट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड ,हंटर कमीशन सिफारिश, इन सब ने इन आंदोलनों का सूत्रपात किया।
  • अन्य घटनाएं जिससे हिंदू मुस्लिम राजनीतिक एकीकरण की व्यापक पृष्ठभूमि तैयार हुई- लखनऊ समझौता, रौलट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन, मौलिक राष्ट्रवादी मुसलमान मोहम्मद अली अबुल कलाम आजाद हसन इमाम आदि ने अलीगढ़ स्कूल का प्रभाव कम किया और एकता पर बल दिया।

खिलाफत और असहयोग आंदोलन – खिलाफत का मुद्दा

  • तुर्की के सुल्तान के  प्रति ब्रिटिश रवैया खराब था और विश्व के मुसलमान उसे इस्लामी राज्य खलीफा मानते थे। पहले विश्व युद्ध के बाद तुर्की पर सेवर्स की संधि आरोपित की गई जिसमें तुर्की का विभाजन था और खलीफा का पद समाप्त था, तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी का साथ दिया था।
  • भारत में इसकी तीव्र आलोचना हुई
  • 1919 में अली बंधुओं मोहम्मद अली और शौकत अली मौलाना आजाद अजमल खान आदि के नेतृत्व में खिलाफत कमेटी का गठन किया जिसका उद्देश्य ब्रिटेन पर दबाव डालना था। खिलाफत कमेटी की अध्यक्षता गांधीजी ने की।
खिलाफत और असहयोग आंदोलन Khilafat Movement India in Hindi
Ali Brothers
  • जिन्ना ने इसका विरोध किया और कहा कि मुस्लिमों का कट्टर पन बढ़ाएं या हिंदू मुस्लिम एकता के लिए घातक है।
    • खिलाफत के प्रश्न पर कांग्रेस का रवैया
    • खिलाफत आंदोलन की सफलता के लिए कांग्रेस का सहयोग अत्यंत आवश्यक था हालांकि खिलाफत गांधीजी के समर्थन से था किंतु कांग्रेस में इस मुद्दे पर सर्वसम्मति का आभाव था बाल गंगाधर तिलक ने धार्मिक मुद्दों पर मुस्लिम नेताओं के साथ संधि करने का विरोध किया।
    • यद्यपि कांग्रेस बाद में झुक गई और गांधी जी के राजनीतिक कार्यक्रम के प्रस्ताव को स्वीकृति दी

असहयोग खिलाफत आंदोलन

  • जून 1920 में केंद्रीय खिलाफत समिति का अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ और इस अधिवेशन में स्कूल कॉलेज न्यायालयों के बहिष्कार का निर्णय लिया गया और गांधीजी को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया।
  • 31 अगस्त 1920 में खिलाफत समिति ने औपचारिक तौर पर असहयोग आंदोलन (Khilafat Movement ) की शुरुआत की, दुर्भाग्यवश 1 अगस्त 1920 का बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई थी
  • सितंबर 1920 कोलकाता के विशेष अधिवेशन में जलियांवाला बाग और खिलाफत के मुद्दे को हल किए जाने तथा स्वराज्य की स्थापना होने तक असहयोग कार्यक्रम चलाने की स्वीकृति दी।
  • दिसंबर 1920 नागपुर अधिवेशन में भी असहयोग आंदोलन पर प्रस्ताव पारित हुआ। कांग्रेस ने यह माना कि संवैधानिक दायरे से बाहर जन संघर्ष किया जाएगा।
  • शुरू में सी आर दास ने इसका विरोध किया
  • कांग्रेस ने स्थानीय स्तर पर वास्तविक क्रियान्वयन के लिए भाषाई आधार पर प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों का गठन किया
  • गांधी जी ने घोषणा की यदि पूरी तन्मयता के साथ आंदोलन चलाया गया तो 1 साल में स्वराज मिल जाएगा
  • क्रांतिकारी आतंकवादियों ने भी कांग्रेस के पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की पर इसी समय मोहम्मद अली जिन्ना एनी बेसेंट और बीसीपाल ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि यह संवैधानिक ढंग से संघर्ष चला जाने के पक्षधर थे।
  • सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इंडियन नेशनल लिबरल फेडरेशन बना ली इसके बाद सहयोग इनका नाम मात्र रह गया।

असहयोग खिलाफत आंदोलन (NonCoopration Khilafat Movement)- आंदोलन का प्रसार

  • गांधी जी ने अली बंधुओं के साथ पूरे देश का दौरा किया और सैकड़ों सभाओं को संबोधित किया हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूल कॉलेजों को छोड़ दिया और राष्ट्रीय स्कूल कॉलेजों में भर्ती हो गया कोलकाता के विद्यार्थियों ने राज्यव्यापी हड़ताल का आयोजन किया
  • सुभाष चंद्र बॉस नेशनल कॉलेज कोलकाता के प्रधानाचार्य बने। जामिया मिलिया काशी विद्यापीठ गुजरात विद्यापीठ ने भी इसका समर्थन दिया
  • कई प्रकार वकीलों ने  वकालत छोड़ दी इनमें जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, सी आर दास ,राजगोपालाचारी सैफुद्दीन किचलू वल्लभभाई पटेल आसिफ अली और राजेंद्र प्रसाद प्रमुख थे
  • विदेशी कपड़ों की सर्वजनिक होली जलाई गई। विदेशी शराब की दुकानों पर धरने दिए गए
  • महात्मा गांधी ने केसर ए हिंद की उपाधि लौटा दी तिलक स्वराज फंड ने अपने लक्ष्य से 10000000 रुपए ज्यादा धन एकत्रित किया चरखा और खादी का खूब प्रचार हुआ। कांग्रेस के स्वयंसेवी सेवाएं समानांतर पुलिस की तरह कार्य करने लगी।
  • सभी सैनिकों और नागरिकों से कहां गया की अपने वैसी शासन से सभी प्रकार के संबंध तोड़ ले ।
  • असम में चाय बागानों के मजदूरों और असम बंगाल रेलवे कर्मचारियों ने भी हड़ताल कर दी ।
  • 17 नवंबर 1921 में Prince of Wales के भारत दौरे का विरोध किया गया इसके बाद पूरे मुंबई में हिंसक वारदातें हुए।
  • असहयोग आंदोलन धीरे-धीरे प्रभावी हो गया और कई स्थानीय आंदोलनों ने इसमें उर्जा भर दी। इनमें अवध किसान आंदोलन( उत्तर प्रदेश) ,एका आंदोलन (उत्तर प्रदेश) ,मोपला विद्रोह( मालाबार) तथा पंजाब में सिखों का आंदोलन महत्वपूर्ण था।
  • आंदोलन में समाज के प्रत्येक वर्ग ने भाग लिया जिनमें व्यवसायिक वर्ग मध्यवर्ग किसान विद्यार्थी महिलाएं शामिल थी
  • नकारात्मक कार्यक्रमों में सरकारी उपाधि प्रशस्ति पत्र लौटना, कपड़ों और विदेशी विद्यालयों का बहिष्कार पद त्याग और कांग्रेस ने चुनाव में भाग न लेना आदि शामिल हो सकता है।
  • मोपला विद्रोह जैसी घटनाओं के बावजूद मुसलमानों की सहभागिता एक उपलब्धि थी ऐसी सहभागिता ना तो अतीत में ना ही भविष्य में देखने को मिली।
  • गांधीजी एकमात्र नेता थे जीने बिना आंखों पर पट्टी बांधे मुस्लिम महिलाओं की जनसभा को संबोधित करने की अनुमति दी गई।

सरकार की प्रतिक्रियाअसहयोग खिलाफत आंदोलन

मई 1921 में गांधीजी तथा भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड रीडिंग के मध्य वार्ता हुई जिसमें सरकार ने अली बंधुओं के खिलाफ बातें की गांधीजी ने महसूस किया किया दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और हीरो ने सरकार की मांग ठुकरा दी इसके पश्चात सरकार ने दमन चक्र शुरू किया सर्वजनिक सभा और प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया और गांधीजी समेत अनेक नेता गिरफ्तार किए गए।

असहयोग खिलाफत आंदोलन का अंतिम चरण

  •   दिसंबर 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में गांधीजी को अवज्ञा का लक्ष्य समय रणनीति आदित्य करने का पूरा अधिकार दिया गया। इधर सरकार का रुख कुछ भी बदल नहीं रहा था
  • 1 फरवरी 1922 को गांधी जी ने घोषणा की कि अब सरकार ने राजनीतिक बंदियों को रिहा नहीं किया और प्रेस से नियंत्रण नहीं हटाया तो देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन होगा।

 पूर्व ही चौरी चौरा की घटना हो गई और संपूर्ण परिदृश्य बदल गया।

चौरी चौरा कांड(Chauri chaura incident upsc) – 5 फरवरी 1922

खिलाफत और असहयोग आंदोलन Khilafat Movement India in Hindi
  • उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ था यह घटना इतनी महत्वपूर्ण थी गांधी जी का आंदोलन 6 साल के लिए स्थगित हो गया।
  • पुलिस ने स्वयंसेवक दलों के कुछ नेताओं को बुरी तरह पीटा इसके परिणाम स्वरूप प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया और पुलिस ने गोलियां चलाई जिसके परिणाम स्वरूप थाने में आग लगा दी जो सिपाही भाग भाग कर बाहर आए, उन्हें भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला इस घटना में 22 पुलिसकर्मी मारे गए, गांधी जी ने तुरंत आंदोलन वापस लेने की घोषणा की।
  • मोतीलाल नेहरू सी आर दास जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने इसकी आलोचना की गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया और ब्रूमफील्ड अदालत ने 6 साल की सजा दी गांधीजी ने इसे हिमालय जैसी भूल कहा।

मैं हर प्रकार का दमन उत्पीड़न सह सकता हूं मृत्य विवरण कर सकता हूं लेकिन आंदोलन हिंसक हो जाए या बर्दाश्त नहीं कर सकता“-गांधीजी 16 फरवरी 1922 को यंग इंडिया में

जब भारतीयों का उत्साह चरम बिंदु पड़ता तो आंदोलन वापस लेने की घोषणा किसी राष्ट्रीय विपत्ति से कम नहीं थी“-सुभाष चंद्र बोस

गांधीजी ने आंदोलन वापस क्यों लिया?

  • गांधीजी का मानना था की बागडोर उनके हाथों से निकलकर हिंसक हाथों में जाने वाली है। साथिया भी मानना था कि सरकार द्वारा राज्य के हितों की रक्षा के बहाने हिंसा को आसानी से कुचल सकते हैं और किसी भी हद तक जा सकते हैं और यह अहिंसक असहयोग आंदोलन की गणित के पूर्ण खिलाफ था।
  • आंदोलन धीरे-धीरे उबाऊ और थकाने वाला भी बन रहा था तो स्वाभाविक था कि यह आंदोलन और लंबा नहीं खींचा जा सकता था।
  • तुर्की की जनता ने 1922 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया और सुल्तान के राजनैतिक अधिकार छीन लिए गए खलीफा का पद समाप्त करके तुर्की में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हो गई, खिलाफत आंदोलन समाप्त हो गया था और खिलाफत के बिना असहयोग भी अप्रासंगिक हो गया।

मार्क्सवादी व्याख्या

  • गांधीजी अमीर वर्ग के हितों के संरक्षक थे उन्होंने महसूस किया कि भारतीय जुझारू संघर्ष की ओर आकर्षित हो रहे हैं और साम्राज्यवादी शासन से लोहा लेने का मन बना चुके हैं और आंदोलन भी उनकी हाथों से निकल जाएगा इन्हीं चीजों की रक्षा के लिए गांधीजी ने आंदोलन वापस लिया गांधीजी ने आंदोलन वापस लेने के पश्चात किसानों को कर और काश्तकारों को लगान देने को कहा जो सिद्ध करता है कि वे जमीदारों और भू स्वामियों के हितों के पक्षधर थे।
  • खिलाफत और असहयोग आंदोलन का मूल्यांकन
  • शहरी मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा में सम्मिलित किया किंतु कुछ अर्थों में इसने राष्ट्रीय राजनीति का संप्रदाय करण भी किया कुछ वर्षों में जब सांप्रदायिकता ने जोर पकड़ा तो सौहार्द चरित्र बना ना  रह सका।
  • इसमें पहली बार पूरे राष्ट्र की जनता को एक सूत्र में बांधा जिससे पता लगा कि कांग्रेस कुछ चुनिंदा लोगों की नहीं बल्कि संपूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करती है।
  • ऐसा कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा जिसने इसमें सहयोग न किया हो जिससे या भ्रांति भी टूट गई कि भारतीयों में चेतना का अभाव है इसमें सरकार की जड़ों को हिला कर रख दिया।
असहयोग खिलाफत आंदोलन से सम्बंधित प्रश्नोत्तर

असहयोग खिलाफत आंदोलन कब शुरू आरम्भ हुआ? 31 अगस्त 1920

असहयोग खिलाफत आंदोलन कहा से शुरू हुआ ? लखनऊ

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