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केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट और चटगांव शस्त्रागार लूट – UPSC
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नेतृत्व में जनता को यह समझाने का निर्णय किया गया कि उसका उद्देश्य अब परिवर्तित हो गया है तथा वह जनक्रांति में विश्वास रखता है।
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केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट (Assembly Bomb case)( अप्रैल 1929 )
इसी समय ब्रिटिश सरकार भारतीयों, विशेषकर मजदूरों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल‘ तथा ‘पब्लिक सेफ्टी बिल‘ पास करने की योजना बना रही थी । इसके प्रति विरोध प्रदर्शित करते हेतु भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त को केंद्रीय विधान सभा में बम फेंकने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। बम फेंकने का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं, अपितु सरकार को विरोध से अवगत कराना तथा ‘बहरे को सुनाना’ था । इसलिये जानबूझ कर मामूली बम बनाया गया तथा 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा के कक्ष में खाली बेंचों में इस बम को फेंका, बम फेंकने का मुख्य उद्देश्य अपनी गिरफ्तारी देकर अदालत को अपनी विचारधारा के प्रचार का माध्यम बनाना था, जिससे जनता उनके विचारों तथा राजनीतिक दर्शन से परिचित हो सके। बम फेंकने के उपरांत मची भगदड़ में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त आसानी से भाग सकते थे किन्तु वे ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते रहे । (Assembly Bomb case)
भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने जानबूझ कर स्वयं को गिरफ्तार कराया था क्योंकि वे जनता को यह संदेश देना चाहते थे कि क्रांतिकारी गतिविधियों की सजा क्रांतिकारी स्वयं भुगतने को तैयार हैं। क्योंकि उस समय जनता में यह धारणा बनती जा रही थी कि विद्रोही गतिविधियों के पश्चात् क्रांतिकारी बचकर निकल जाते हैं तथा सरकारी दमन की सजा जनता को भुगतनी पड़ती है ।
लाहौर षड़यंत्र केस
सरकार ने चन्द्रशेखर आजाद के अतिरिक्त सभी प्रमुख क्रांतिकारियों को पकड़ लिया। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु पर लाहौर षड़यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया। अन्य क्रांतिकारियों को कड़ी सजायें हो गयीं। जेल में इन क्रांतिकारियों ने जेल की अमानवीय परिस्थितियों के विरोध में भूख हड़ताल कर दी तथा मांग की कि राजनैतिक बंदियों के साथ हिरासत के दौरान सम्माननीय तथा न्यायोचित व्यवहार किया जाये। जतिन दास पहले शहीद बने। जेल में 64 दिनों की भूख हड़ताल के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। कांग्रेस के नेताओं ने इन युवा क्रांतिकारियों का जोरदार समर्थन किया। भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनायी गयी तथा 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। इस खबर से पूरा देश स्तब्ध रह गया ।
हर जुबान पर भगत सिंह का नाम आ गया। पूरे राष्ट्र ने इन महान देशभक्तों की कुर्बानी को सरकार की कायरतापूर्ण कार्यवाई की संज्ञा दी ।
दिसम्बर 1929 में चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने दिल्ली के निकट वायसराय लार्ड इर्विन की ट्रेन को जलाने का प्रयास किया। 1930 में पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अनेक विद्रोहीघटनायें हुईं। अकेले पंजाब में एक वर्ष में विद्रोह की 26 घटनायें दर्ज की गयीं ।
फरवरी 1931 में इलाहाबाद में एक पार्क में चन्द्रशेखर आजाद पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में गोलियों के शिकार हो गये ।
1920 के दशक में कई क्रांतिकारी समूहों को पुनर्गठित किया गया। इन्होंने अपनी गतिविधियां पुनः प्रारम्भ कर दीं तथा भूमिगत कार्यवाइयां करने लगे। कई अन्य समूह कांग्रेस के अधीन ही कार्य करते रहे। इस प्रकार उन्होंने जनता में अपनी पैठ और व्यापक की तथा कांग्रेस को सांगठनिक आधार प्रदान किया। कस्बों तथा गांवों में सी. आर. दास के स्वराजवादी कार्यक्रम में इन युवा क्रांतिकारियों ने सक्रिय भूमिका निभायी तथा उसे व्यापक सहयोग प्रदान किया। 1925 में सी. आर. दास की मृत्यु के पश्चात् बंगाल में कांग्रेस दो धड़ों में विभक्त हो गयी – एक धड़े का नेतृत्व अनुशीलन समिति से सम्बद्ध J. M. सेनगुप्ता ने किया, जबकि दूसरे धड़े का नेतृत्व युगान्तर समूह से सम्बद्ध सुभाष चन्द्र बोस के हाथों में था ।
इन पुनर्गठित क्रांतिकारी समूहों ने कई आतंकवादी गतिविधियां संपन्न कीं। 1924 में कलकत्ता के बदनाम पुलिस कमिश्नर चार्ल्स टेगार्ट की गोपीनाथ साहा ने हत्या करने की चेष्टा की। इसके पश्चात् सरकार ने कड़ाई से क्रांतिकारियों को कुचलना प्रारम्भ कर दिया। सुभाषचन्द्र बोस सहित अनेक क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिये गये तथा गोपीनाथ साहा को फांसी पर चढ़ा दिया गया ।
सरकारी दमन तथा आपसी फूट के कारण क्रांतिकारी गतिविधियां धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगीं। किन्तु शीघ्र ही प्रमुख क्रांतिकारी पुनः सक्रिय हो गये तथा उन्होंने नये ‘विद्रोही संगठनों’ की स्थापना कर ली। इन पुनर्गठित या नवगठित क्रांतिकारी समूहों ने भी अनेक विद्रोही गतिविधियों को अंजाम दिया। इन नये ‘विद्रोही संगठनों’ में सबसे सक्रिय संगठन था चटगांव क्रांतिकारियों का गुट, जिसके नेता ‘सूर्यसेन’ थे।
चटगांव शस्त्रागार लूट (चटगांव आर्मी रेड)(अप्रैल 1930)
सूर्यसेन ने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी तथा चटगांव के राष्ट्रीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे थे। लोग उन्हें प्यार से मास्टर दा के नाम से पुकारते थे। क्रांतिकारी गतिविधियों से संलग्न होने के कारण 1926 से 1928 तक उन्हें दो साल की सजा हुई थी । जेल से रिहा होने के पश्चात् वे कांग्रेस में काम करते रहे। वे चटगांव जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव थे। वे कहा करते थे ‘सहृदयता क्रांतिकारी का विशेष गुण है’ । सूर्यसेन मृदुभाषी, शांत तथा लगनशील व्यक्ति थे तथा कविताओं से उन्हें बहुत लगाव था । रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा काजी नजरुल इस्लाम के वे बहुत बड़े प्रशंसक थे ।
सूर्यसेन ने अपने सहयोगियों अनन्त सिंह, गणेश घोष तथा लोकीनाथ बाउल के साथ मिलकर सशस्त्र विद्रोह की योजना बनायी । इसका उद्देश्य जनता को यह बताना था कि सशस्त्र विद्रोह से शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है । विद्रोह की प्रस्तावित कार्रवाई में चटगांव के दो शस्त्रागारों पर कब्जा कर क्रांतिकारियों को हथियारबंद करने के निमित्त हथियारों को लूटना, नगर की युवा टेलीफोन और टेलीग्राफ संचार व्यवस्था को नष्ट करना तथा चटगांव और शेष बंगाल के बीच रेल सम्पर्क को भंग करना था । इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की चटगांव शाखा के तले 65 युवा क्रांतिकारियों द्वारा अप्रैल 1930 में शस्त्रागारों पर धावा बोल दिया गया। पुलिस शस्त्रागार पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया गया, सूर्यसेन ने शस्त्रागार के बाहर राष्ट्रीय झंडा फहराया, क्रांतिकारी युवकों ने उन्हें सलामी दी तथा कामचलाऊ क्रांतिकारी सरकार के गठन की घोषणा की गयी। बाद में ये समीपवर्ती गावों में फैल गये तथा सरकारी दफ्तरों एवं सरकारी सम्पत्ति पर छापे मारे।
किन्तु शीघ्र ही सेना चटगांव पहुंच गयी तथा उसने मोर्चा संभाल लिया । सेना तथा क्रांतिकारियों में सशस्त्र संघर्ष हुआ। कई युवा क्रांतिकारी बहादुरीपूर्वक संघर्ष करते हुए शहीद हो गये। फरवरी 1933 में सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिये गये। उन पर मुकदमा चलाया गया तथा जनवरी 1934 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया । किन्तु चटगांव कांड से जनता अत्यन्त प्रभावित हुई। इस घटना से क्रांतिकारी विचारों वाले युवकों का उत्साह बहुत बढ़ गया तथा बड़ी तादात में युवक विभिन्न आतंकवादी गुटों में शामिल होने लगे। 1930 में क्रांतिकारी गतिविधियों ने पुनः जोर पकड़ा तथा यह क्रम 1932 तक चलता रहा ।
सरकार की प्रतिक्रिया : चटगांव शस्त्रागार लूट
शस्त्रागारों की लूट से सरकार पहले तो घबराई लेकिन बाद में वह बर्बर दमन पर उतर आयी। सरकार ने 20 दमनकारी कानून जारी किये तथा क्रांतिकारियों को कुचलने हेतु पुलिस को पूरी छूट दे दी। चटगांव में पुलिस ने अनेक गांवों को जलाकर भस्म कर दिया तथा अनेक ग्रामीणों पर भारी जुर्माना लगाया । देशद्रोह के आरोप में 1933 में जवाहरलाल नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें दो वर्ष की सजा दी गयी । उन पर साम्राज्यवाद तथा पुलिस के दमन की निंदा करने तथा क्रांतिकारी युवकों के साहस और वीरता की प्रशंसा करने का आरोप था।
भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी कब दी गई?
23 मार्च 1931
Chittagong Armoury raid was led by
Surya Sen