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सिंधु घाटी सभ्यता – Indus Valley Civilization UPSC
वर्षों पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) बीसवीं सदी के द्वितीय दशक तक एक गुमनाम सभ्यता थी विद्वानों की धारणा थी कि सिकंदर के आक्रमण (326 ई.पू.) के पूर्व भारत में कोई सभ्यता ही नहीं थी। बीसवीं सदी के तृतीय दशक में दो पुरातत्वशास्त्रियों-दयाराम साहनी तथा राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के प्राचीन स्थलों से पुरावस्तुएँ प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया कि सिकंदर के आक्रमण के पूर्व भी एक सभ्यता थी, जो अपने समकालीन सभ्यताओं में सबसे विकसित थी।
कालांतर में सर जॉन मार्शल, माधव स्वरूप वत्स, के.एन. दीक्षित, अर्नेस्ट मैके, ऑरेल स्टेइन, अमलानंद घोष, जे. पी. जोशी आदि विद्वानों ने उत्खनन करके महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ प्राप्त की। उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस पूरी सभ्यता को ‘सिंधु घाटी सभ्यता'(Indus Valley Civilization), अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर ‘हड़प्पा सभ्यता’ कहा जाता है। नामकरण सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। आरंभ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (Mohanjodaro) की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं अतः विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, बनावली, रंगपुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिल जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः इतिहासकार, इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को ‘हड़प्पा की सभ्यता’ नाम देना उचित मानते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

- सिंधु घाटी सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता (Bronze Age Civilization) थी, जिसका उद्भव ताम्रपाषाण काल (Chacolithic Age) में भारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था और इसका विस्तार भारत क अलावा पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी था।
- सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक तथा पश्चिम में सुत्कागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था।
- वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1100 किमी. तक तथा पूर्व से पश्चिम 1600 किमी. तक थी।
- अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किये गए हैं। सिधु घाटी सभ्यता अपने त्रिभुजाकार स्वरूप में थी जिसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किमी. है।
- सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में सैंधव सभ्यता का पता लगाया, जिसका सर्वप्रथम वर्णन उनके द्वारा 1842 में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है। उसके बाद वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्त्वविद् दयाराम साहनी ने उत्खनन कर इसके प्रमुख नगर ‘हड़प्पा’ का पता लगाया। सर्वप्रथम हड़प्पा स्थल की खोज के कारण इसका नाम ‘हड़प्पा सभ्यता’ रखा गया।
- John Marshal के दिशानिर्देश में ही राखालदास बनर्जी द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में की गई। Radio C-14 Dating के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है। यह सभ्यता 400-500 वर्षों तक विद्यमान रही तथा 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के मध्य तक यह अपनी परिपक्व अवस्था में थी। नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8,000 साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताओं के निर्धारण का महत्त्वपूर्ण स्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल (Human Skelton) है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदडो से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंध सभ्यता में चार प्रजातियाँ निवास करती थीं- भूमध्यसागरीय, प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, अल्पाइन तथा मंगोलॉयड।
- सबसे ज़्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना
• सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसका ज्ञान इसके पुरातात्त्विक अवशेषों तथा अनुसंधानों से होता है। इसकी सबसे बडी विशेषता थी- पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन तथा जल निकास प्रणाली।
• सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। लगभग सभी नगरदो भागों में विभक्त थे
• प्रथम भाग में ऊँचे दुर्ग निर्मित थे। इनमें शासक वर्ग निवास करता था।
दूसरे भाग में नगर या आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं, जो अपेक्षाकृत बड़े थे। आमतौर पर यहाँ सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। सड़कों के किनारे की नालियाँ ऊपर से ढकी होती थीं। घरों का गंदा पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ नगर की मुख्य नाली में गिरता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगा की नगर योजना लगभग एकसमान थी। कालीबंगा व रंगपुर को छोड़कर सभी में पकी हुई ईंटों का प्रयोग हुआ है। आमतौर पर प्रत्येक घर में एक आंगन, एक रसोईघर तथा एक स्नानागार होता था। अधिकांश घरों में कुओं के अवशेष भी मिले हैं।
• बड़े-बड़े भवन हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की विशेषता बतलाते हैं। हड़प्पाकालीन नगरों के चारों ओर प्राचीर बनाकर किलेबंदी की गई थी, जिसका उद्देश्य नगर को चोर, लुटेरों एवं पशु दस्युओं से बचाना था। मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सैंधव सभ्यता का अद्भुत निर्माण है, जबकि अन्नागार सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
• घरों के दरवाज़े एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क पर न खुलकर गलियों में open थीं, लेकिन लोथल इसका अपवाद है। इसके दरवाज़े एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़कों की ओर खुलती थीं। यद्यपि मकान बनाने में कई प्रकार की ईंटों का प्रयोग होता था, जिसमें 4:2:1 (लंबाई, चौड़ाई तथा मोटाई का अनुपात) के आकार की ईंटें ज़्यादा प्रचलित थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
हड़प्पा
- सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की खोज सर्वप्रथम 1921 ई. में हड़प्पा में की गई। हड़प्पा वर्तमान में रावी नदी के बायें तट पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है। स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे ‘अर्द्ध-औद्योगिक नगर’ कहा है। यहाँ के निवासियों का एक बड़ा भाग व्यापार, तकनीकी उत्पाद और धर्म के कार्यों में संलग्न था। उन्होंने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी’ कहा था। नगर की रक्षा के लिये पश्चिम की ओर एक दुर्ग का निर्माण किया गया था। यह दुर्ग उत्तर से दक्षिण की ओर 415 मीटर लंबा तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 195 मीटर चौड़ा है। जिस टीले पर यह दुर्ग बना है उसे व्हीलर ने ‘माउंड ए-बी’ (MoundA-B) की संज्ञा प्रदान की है।

मोहनजोदड़ो
- इसका सिंधी भाषा में अर्थ ‘मृतकों का टीला’ होता है। यह सिंध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। सर्वप्रथम इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी। मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक थी। वृहद् स्नानागार, मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है। इसके केंद्रीय खुले प्रांगण के बीच जलकुंड या जलाशय बना है।
- तांबे तथा टिन को मिलाकर हड़प्पावासी काँसे का निर्माण करते थे। मोहनजोदड़ो से काँसे की एक नर्तकी की मूर्ति पायी गई है, जो द्रवी मोम विधि (Lost wax method) से बनी है।

चन्हूदड़ो
- यह सैंधव नगर मोहनजोदड़ो से 130 किमी. दक्षिण-पूर्व सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1934 ई. में एन.गोपाल मजूमदार ने की थी तथा 1935 ई. में अर्नेस्ट मैके द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया।
- चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है, जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं।

- चन्हूदड़ो में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है। चन्हूदड़ो से पूर्वोत्तर हड़प्पाकालीन संस्कृति (झूकर-झाँगर) के अवशेष मिले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक औद्योगिक केंद्र था जहाँ मणिकारी, मुहर बनाने, भार-माप के बटखरे बनाने का काम होता था। अर्नेस्ट मैके ने यहाँ से मनका बनाने का कारखाना तथा भट्टी की खोज की है।
लोथल
- यह गुजरात के अहमदाबाद जिले के सरगवाला ग्राम के समीप दक्षिण में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। इसकी खोज सर्वप्रथम डॉ. एस.आर. राव ने 1955 ई. में की थी।
- यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह था, जो पश्चिमी एशिया से व्यापार का प्रमुख स्थल था। लोथल में नगर को दो भागों में न बाँटकर एक ही रक्षा प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया था।
राखीगढ़ी
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित प्रमुख पुरातात्विक स्थल।
- यहाँ से अन्नागार एवं रक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं।
- मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे एश्यिा के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है।
कालीबंगा
- यह राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के बायें तट पर है।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काले रंग की चूड़ियाँ’ हैं। इसकी खोज 1951 में अमलानंद घोष द्वारा की गई तथा 1961 ई. में बी.बी. लाल और बी.के. थापर के निर्देशन में व्यापक खुदाई की गई।
- यहाँ से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।
- यहाँ के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों द्वारा हुआ था; यहाँ से अलंकृत ईंटों के साक्ष्य भी मिले हैं। कालीबंगा में शवों के अंत्येष्टि संस्कार हेतु तीन विधियों- पूर्ण । समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह-संस्कार के प्रमाण मिले हैं।
बनावली
- हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973 ई. में आर.एस. बिष्ट ने की थी।
- इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
- यहाँ जल निकास प्रणाली का अभाव था।
- यहाँ से मिट्टी का बना हल मिला है।
- बनावली से अधिक मात्रा में जौ मिला है।
धौलावीरा
- यह गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में स्थित है। इसकी खोज 1967 ई. में जे.पी.जोशी ने की थी। यहाँ से प्राप्त होने वाली सिंधु लिपि के 10 बड़े चिह्नों से निर्मित शिलालेख महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। धौलावीरा के निवासी जल संरक्षण की तकनीक से परिचित थे। नगर तीन भागों में विभाजित था- दुर्गाभाग, मध्यम नगर तथा निचलानगर।
- धौलावीरा से हडप्पा सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम (खेल का मैदान) मिला है।
हड़प्पाई लिपि
हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 205-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था और 1923 ई. तक पूरी लिपि प्रकाश में आ गई थी, परंतु अभी तक इसको पढ़ा नहीं जा सका है। इसकी लिपि पिक्टोग्राफ अर्थात् चित्रात्मक थी जो दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी। इस पद्धति को बूस्ट्रोफेडन (Boustrophedon) कहा गया है। सबसे ज़्यादा चित्र ‘U’ आकार तथा ‘मछली’ के प्राप्त हुए हैं।
Indus Valley Civilization सामाजिक जीवन
- सिंधु घाटी से प्राप्त अवशेषों के आधार पर उस काल के सामाजिक जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है। समाज की इकाई परंपरागत तौर पर परिवार थी। मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह पता चलता है कि हड़प्पा समाज संभवत: मातृसत्तात्मक था। समाज में विद्वान (पुरोहित), योद्धा, व्यापारी और श्रमिक वर्ग की मौजूदगी थी। आवासों की संरचना समाज की आर्थिक विषमता को दर्शाती है।
- हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे। स्त्री एवं पुरुष दोनों आभूषण धारण करते थे। यहाँ से प्रसाधन मंजूषा मिली है। चन्हूदड़ो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले हैं। सिंधु सभ्यता के लोग सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे। इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे। यहाँ के लोग मनोरंजन के लिये चौपड़ और पासा खेलते थे। अंत्येष्टि में पूर्ण समाधीकरण सर्वाधिक प्रचलित था, जबकि आशिक (Partial)समाधीकरण एवं दाह संस्कार का भी चलन था।
- यहाँ के लोग गणित, धातु निर्माण, माप-तौल प्रणाली, ग्रह-नक्षत्र, मौसम विज्ञान इत्यादि की जानकारी रखते थे।
- सैंधव सभ्यता के लोग युद्धप्रिय कम, शांतिप्रिय ज्यादा थे।
- श्रमिकों की स्थिति का आकलन कर व्हीलर ने दास प्रथा को स्वीकार किया है। राजनीतिक जीवन हड़प्पाइयों के राजनीतिक संगठन का कोई स्पष्ट आभास नहीं है।
- चूँकि, हड़प्पावासी वाणिज्य-व्यापार की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिये ऐसा माना जाता है कि शासन व्यवस्था में भी वणिक अथवा व्यापारी वर्ग की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। हंटर के अनुसार, “मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।”
- व्हीलर के अनुसार, “सिंधु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।”
- आर्थिक जीवन सैंधव सभ्यता की उन्नति का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था। अतः इस काल की अर्थव्यवस्था ही सिंचित कृषि अधिशेष, पशुपालन, विभिन्न दस्तकारियों में दक्षता और समृद्ध आंतरिक और विदेश व्यापार पर आधारित थी। सैंधव सभ्यता का व्यापार केवल सिंधु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था अपितु मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया से भी व्यापार होता था।
- सैंधव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह- लोथल, रंगपुर, सुरकोटदा, प्रभासपाटन आदि थे। हड़प्पा सभ्यता में माप की दशमलव प्रणाली तथा माप-तौल की इकाई 16 के गुणक में होती थीं।
- इस सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, कपास आदि की खेती किया करते थे। सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है। यूनानियों ने इसे ‘सिंडन’ (सिडोन) नाम दिया है। ये लोग तरबूज़, खरबूज़, नारियल, अनार, नींबू, केला जैसे फलों से भी परिचित थे। यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूँ तथा जौ थे। कृषि कार्य हेतु प्रस्तर (पत्थर) एवं काँसे के औज़ारों का प्रयोग किया जाता था। इस सभ्यता में फावड़ा या फाल नहीं मिला है। संभवतः ये लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। सैंधव नगरों में कृषि पदार्थों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से होती थी, इसलिये अन्नागार नदियों के किनारे बनाए गए थे। कृषि उन्नति के साथ पशुपालन का भी विकास हुआ था। कृषि कार्यों एवं व्यापार तथा परिवहन में पशुओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। पशुओं में- कूबड़ वाले बैल, भेड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे, सुअर व कुत्ते आदि के होने का अनुमान है।
- गुजरात के निवासी हाथी पालते थे।
Indus Valley Civilization धार्मिक जीवन
- सैंधव निवासी ईश्वर की पूजा मानव, वृक्ष एवं पशु तीनों रूपों में करते थे। इस सभ्यता के लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करते थे। ताबीजों के आधार पर जादू-टोने में विश्वास करने तथा कुछ जगहों की मुहरों (जैसे-चन्हूदड़ो में) पर बलि प्रथा के दृश्य अंकित होने के आधार पर बलि प्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है। ये लोग मातृदेवी, रुद्र देवता (पशुपति नाथ), लिंग-योनि आदि की पूजा करते थे। इसके अलावा सैंधववासी वृक्ष, पशु, साँप, पक्षी इत्यादि की भी पूजा करते थे। विशाल स्नानागार का प्रयोग संभवतः धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्य पूजा में होता होगा। कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि तथा स्वास्तिक (1) आदि की पूजा की जाती थी। स्वास्तिक और चक्र सूर्य पूजा के प्रतीक थे। सैंधववासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, इसलिये मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे- पूर्ण शवाधान, आंशिक शवाधान एवं कलश शवाधान। इनके धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक तथा व्यावहारिक अधिक था। मूर्ति पूजा का आरंभ संभवतः सैंधव सभ्यता से ही होता है। हड़प्पा से प्राप्त एक मृणमूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकला दिखाया गया है, जो उर्वरता की देवी का प्रतीक है।
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण
हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति की तरह ही इसके पतन के लिये कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं था। इस सभ्यता के प्राचीन अवशेषों के अध्ययन से यह पता चलता है कि अपने अंतिम समय में यह पतनोन्मुख रही। अंततः द्वितीय सहस्राब्दी ई.पू. के मध्य इस सभ्यता का पूर्णतः विनाश हो गया। इस सभ्यता का क्रमिक पतन हुआ तथा यह नगरीय सभ्यता से ग्रामीण सभ्यता में पहुँच गयी।
सैंधव सभ्यता की देन
सैंधव सभ्यता में प्रचलित अनेक चीजें ऐतिहासिक काल में भी निरंतर रहीं। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं- दशमलव पद्धति पर आधारित माप-तौल प्रणाली, नगर नियोजन, सड़कें एवं नालियों की व्यवस्था, बहुदेववाद का प्रचलन, मातृदेवी की पूजा, प्रकृति पूजा, शिव पूजा, लिंग एवं योनि पूजा, योग का प्रचलन, जल का धार्मिक महत्त्व, स्वास्तिक, चक्र आदि प्रतीक के रूप में ताबीज, तंत्र-मंत्र का प्रयोग, आभूषणों का प्रयोग, बहुफसली कृषि व्यवस्था, अग्नि पूजा या यज्ञ, मुहरों का उपयोग, इक्कागाड़ी एवं बैलगाड़ी, आंतरिक एवं बाह्य व्यापार आदि। सैंधव सभ्यता की एक प्रमुख देन नगरीय जीवन के क्षेत्र में है। पूर्ण विकसित नगरीय जीवन का सूत्रपात इसी सभ्यता से हुआ।
Related Questions (Indus Valley Civilization)
1. सिंधु घाटी सभ्यता के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
1. यह प्रमुखतः लौकिक सभ्यता थी। यद्यपि इसमें धार्मिक तत्त्व उपस्थित थे, पर वे वर्चस्वशाली नहीं थे।
2. उस काल में भारत में कपास से वस्त्र बनाए जाते थे। कूटः (a) केवल 1
(b) केवल 2 (c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से लक्षण सिंधु सभ्यता के लोगों का सही चित्रण है/हैं?
1. उनके विशाल महल और मंदिर होते थे। 2. वे देवी और देवताओं दोनों की पूजा करते थे। 3. वे युद्ध में घोड़ों द्वारा खींचे गए रथों का प्रयोग करते थे।
कूटः (a) 1 और 2
(b) केवल 2 (c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
3. निम्नलिखित पशुओं में से किस एक का हड़प्पा संस्कृति में पाई गई मुहरों और टेराकोटा कलाकृतियों में निरूपण (Representation) नहीं हुआ है?
(a) गाय
(b) हाथी (c) गैंडा
(d) बाघ
4. निम्नलिखित में से कौन हडप्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन से संबंधित नहीं है?
(a) आर.डी. बनर्जी (b) के.एन. दीक्षित (c) एम.एस. वत्स
(d) वी.ए. स्मिथ
5. निम्नलिखित में से कौन-सा एक हड़प्पा का बंदरगाह है?
(a) सिकंदरिया
(b) लोथल (c) महास्थानगढ़
(d) नागपट्टनम्
6. वह हड़प्पाकालीन नगर, जिसका प्रतिनिधित्व लोथल का पुरातत्त्व स्थल करता है, किस नदी पर स्थित था?
(a) नर्मदा
(b) माही (c) भोगवा
(d) भीमा
7. एक उन्नत जल-प्रबंधन व्यवस्था का साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है?
(a) आलमगीरपुर से (b) धौलावीरा से (c) कालीबंगा से
(d) लोथल से
8. स्थापित सिंधु घाटी सभ्यता जिन नदियों के तट पर बसी थी, वे कौन-सी थीं?
1. सिंधु
2. चेनाब 3. झेलम
4. गंगा कूटः
(a) 1 और 2
(b) 1, 2 और 3 (c) 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
9. सिंधु घाटी सभ्यता गैर-आर्य थी, क्योंकि
(a) वह नगरीय सभ्यता थी। (b) उसकी अपनी लिपि थी। (c) उसकी खेतिहर अर्थव्यवस्था थी। (d) उसका विस्तार नर्मदा घाटी तक था।
उत्तरमाला
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