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संविधान विकास के चरण Stages of Constitutional Development (1773-1950)
1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को जीतने के बाद अंग्रेजों ने यह उचित समझा कि यह पर शासन आसानी से और कुशलतापूर्वक किया जा सके। कर्मचारियों में सामंजस्य बने और शासन दीर्घावधि तक चले। इसीलिए उन्होंने समय समय पर अपनी मांगों को कानून के रूप के दर्शाया। जिसे संविधान विकास के चरण बोलते है।
कुछ प्रमुख कानून निम्न है –
Table of Contents
Regulating act 1773**
- भारत में कंपनी के शासन हेतु प्रथम लिखित संविधान था।
- बंबई +मद्रास प्रेसिडेंट =कोलकाता प्रेसिडेंसी के अधीन
- कोलकाता प्रेसिडेंसी में गवर्नर जनरल और चार सदस्य परिषद थी जिसे पिट्स इंडिया में 3 सदस्य परिषद कर दिया और इन सब का नियंत्रण सरकार के पास था।
- 1774 में कोलकाता में पहली बार सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई।** और सर एलिजह एम्पे , प्रथम चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया था।* इसके जुडिशरी में बंगाल बिहार और उड़ीसा आते थे।
- बंगाल गवर्नर को तीनों का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।**
- उपहार आदि लेने पर प्रतिबंध लगाया गया तथा व्यापार की सभी सूचनाएं क्राउन को दी जाएं
1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट (Pitt’s India Act)
- ब्रिटिश संसद में तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर William Pitts प्रस्तुत किया।
- इस एक्ट के द्वारा द्वैध प्रशासन* का प्रारंभ हुआ-
(i) कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स – व्यापारिक मामलों के लिए /ब्रिटिश कोर्ट ऑफ डायरेक्टर को कंपनी के व्यापारिक मामलों की मॉनिटरिंग मिली।
(ii) बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर**** कंपनी- राजनीतिक मामलों के लिए
1813 ई. का चार्टर अधिनियम
- कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया
- कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया.** लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा
- कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया।
- ईसाई मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।*
- भारत में शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष एक लाख देना स्वीकार किया गया।
1833 ई. का चार्टर अधिनियम
- कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए
- अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया
- बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा**- बेंटिक (भारत में विधि बनाने का एकाधिकार)
- भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.
- Civil services के लिए खुली प्रतियोगिता
- दास प्रथा समाप्त की गई
1853 ई. का चार्टर अधिनियम
- इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गई।
- पहली बार संपूर्ण भारत के लिए पृथक विधान परिषद की स्थापना हुई *जो आगे जाकर लघु संसद कह लाई।
- पहली बार सिविल सेवाओं में भारतीयों को शामिल किया गया।
1858 ई. का चार्टर अधिनियम
- भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों सौंपा गया***
- कोर्ट ऑफ डायरे्टर्स और बोर्ड ऑफ कंट्रोल समाप्त। इन सब के अधिकार ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को सौंप दें जिसको भारत का राज्य सचिव कहा गया। तथा सचिव की मदद के लिए भारत परिषद का गठन हुआ।
- भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गई – 15 सदस्यों की भारत-परिषद का सृजन हुआ।
- मुगल सम्राट का पद समाप्त किया गया।
भारतीय दंड संहिता 1860, में लागू हुई।
1861 ई. का भारत शासन अधिनियम
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया,( lord canning)
- गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई. ***
- गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.
1892 ई. का भारत शासन अधिनियम
- अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, -प्रथम परोक्ष चुनाव प्रणाली*
- इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई.
1909 ई० का भारत शासन अधिनियम (मार्ले -मिंटो सुधार)
- Lord Minto- सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक
- (i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया.
- (ii) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई.
- सत्येंद्र प्रसाद सिंहा वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय /विधि सदस्य थे।
- (iii) केंद्रीय और प्रांतीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।
1919 ई० का भारत शासन अधिनियम (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार)
(i) केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे
(ii) प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया. इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित.
भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है.
(vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया. यह परीक्षा 1922 से भारत में होने लगी।**
प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली के जनक- Lionel Curtis***
1935 ई० का भारत शासन अधिनियम
(i) अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया.
(ii) प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया.
(iii) केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था.
(iv) संघीय न्यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी.
(v) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.
(vi) भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.
(vii) सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों – भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया.
(viii) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था.
(xi) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया.
लखनऊ अधिवेशन 1936 में कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया जिसके अध्यक्ष नेहरू थे।*
एक कार जिसमें ब्रेक है पर इंजन नहीं
नेहरू
1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया. इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं. अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –
(i) दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी. सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा.
(ii) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी.
(iii) संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं.
(iv) भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें.
(v) 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा.
(vi) देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया. उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई.