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भारतीय दंड संहिता 1960 : Sub Inspector
Indian Penal Code 1960 : General Introduction
- जेम्स स्टीफन के अनुसार, “अपराध एक ऐसा कृत्य है, जो विधि द्वारा निषिद्ध तथा समाज के नैतिक मनोभावों के प्रतिकूल दोनों ही होता है।
- केनी ने अपनी पुस्तक ‘आउटलाइंस ऑफ क्रिमिनल लॉ’ में अपराध को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “अपराध ऐसा दोष है जिसकी अनुशास्ति दंड है और जो किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा क्षम्य नहीं है, यदि वह क्षम्य है, तो केवल सम्राट द्वारा”
- भारतीय दंड संहिता का समुद्र में क्षेत्राधिकार 12 समुद्री मील तक फैला हुआ है।
- अपराध के निम्नलिखित चार आवश्यक तत्व हैं
(i) मानव,
(ii) आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mensrea),
(iii) आपराधिक कृत्य, तथा ।
(iv) ऐसे आपराधिक कृत्य से मानव तथा समाज को क्षति।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 1 संहिता के नाम और उसके प्रवर्तन (लागू) के विस्तार से संबंधित है।
- भारतीय दंड संहिता को 1 जनवरी, 1862 से लागू किया गया।
- धारा 2 के अनुसार, ‘जो व्यक्ति भारत के राज्य क्षेत्र के अंतर्गत अपराध करता है, वह इस संहिता द्वारा दंडित किया जाएगा।
- धारा 4 के अनुसार, भारत के बाहर किसी भी स्थान पर भारतीय नागरिक द्वारा या भारत में पंजीकृत किसी पोत या विमान पर, वह चाहे जहां भी हो, किसी व्यक्ति द्वारा इस संहिता के अंतर्गत अपराध किए जाने पर इस संहिता के उपबंध लागू होंगे।
- भारतीय दंड संहिता की कोई बात विशेष विधि या स्थानीय विधि के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालती है।
- धारा 10 में पुरुष एवं स्त्री के बारे में बताया गया है। ‘पुरुष’ शब्द किसी भी आयु के मानव नर का द्योतक है, चाहे वह एक दिन का हो या 100 वर्ष या उससे ऊपर। इसी प्रकार ‘स्त्री’ शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का द्योतक है।
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