Rashtriya Apatkal 352 Rashtrapati Shasan 356 Notes

  • 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 =‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’
  • मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

उद्घोषणा की प्रक्रिया एवं अवधि

  • अनुच्छेद 352 के आधार पर राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा नहीं कर सकता जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप से ऐसा प्रस्ताव उसे न भेज दे। ना कि सिर्फ प्रधानमंत्री की सलाह पर।
  • यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया। (इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपात घोषित करवाने के पश्चात मंत्रिमंडल को बताया था)
  • ऐसी उद्घोषणा का संकल्प संसद के प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति व मतदान करने वाले सदस्यों को 2/3 बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा।
  • राष्ट्रीय आपात की घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाता है तथा एक महीने के अंदर अनुमोदन न मिलने पर यह प्रवर्तन में नहीं रहती, किंतु एक बार अनुमोदन मिलने पर छह माह के लिये प्रवर्तन में बनी रह सकती है। हर 6 महीने में अनुमोदन होने पर अनिश्चित काल तक

उद्घोषणा की समाप्ति

  • राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय एक दूसरी उद्घोषणा से समाप्त किया जा सकता है।

ऐसी उद्घोषणा के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।

  • लोकसभा इसको वापस लेने की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर सकती है।
  • राष्ट्रपति को ऐसी उद्घोषणा करनी आवश्यक है जब लोकसभा इसके जारी रहने का अनुमोदन का प्रस्ताव निरस्त कर दें।

प्रभाव

  • राज्य विधायिका कार्य करती रहती है प्रभाव यह होता है कि राज्य की विधाई और प्रशासनिक शक्तियां केंद्र को प्राप्त हो जाती हैं।
  • लोकसभा के कार्यकाल को इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाने के लिये संसद द्वारा विधि बनाकर इसे एक समय में एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है। संसद किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी प्रत्येक बार एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ा सकती है।

मूल अधिकारों पर प्रभाव

  • आपातकाल के समय मूल अधिकारों के स्थगन का प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से लिया गया है।
  • अनुच्छेद 358 तथा 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करते हैं।
  • अनुच्छेद 358, अनुच्छेद 19 द्वारा दिये गए मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है।
  • जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपत की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं।
  • अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर)
  • यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं

  • अंबेडकर ने इसे  मृत पत्र कहा था
  • दो आधार पर लागू किया जा सकता है

356=राष्ट्रपति आश्वस्त है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल रही है या राज्यपाल की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया कर सकता है।

365=राज्य सरकार केंद्र द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने या उसको प्रभावी करने में असफल होता है तो या राष्ट्रपति के लिए विधि संगत होगा कि वह स्थिति संभाले।

  • राज्य कार्यपालिका बर्खास्त हो जाती है तथा राज्य विधायिका या तो निलंबित हो जाती है या विघटित। राष्ट्रपति राज्यपाल के माध्यम से राज्य चलाता है तथा संसद कानून बनाती है।
  • उच्च न्यायालय की शक्तियां नहीं जाती।
  • जारी रखने का प्रस्ताव सामान्य बहुमत से पारित होता है।
  • 2 महीने तक उद्घोषणा का प्रभाव रहता है तथा उसके भीतर दोनों संसद अलग-अलग अनुमोदन कर दें तो 6 महीने तक बढ़ जाएगा। अधिकतम 3 वर्ष तक रह सकता है|
  • मूल अधिकार प्रभावित होते हैं|

  • राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है भारत या उसके किसी क्षेत्र की वित्तीय स्थिति खतरे में है तो ऐसी उद्घोषणा कर सकता है।
  • 2 महीने के भीतर संसद की स्वीकृति मिलना आवश्यक है। वित्तीय आपातकाल की घोषणा के दौरान यदि लोकसभा विघटित हो याद इन 2 महीनों में विघटित हो जाए तो घोषणा पुनर्गठन लोक सभा की प्रथम बैठक के 30 दिन तक प्रभावी रहेगी परंतु राज्यसभा की अनुमति मिलना आवश्यक है।
  • दोनों सदन मंजूरी दे दे (सामान्य बहुमत से), अनिश्चितकाल तक चलता है तथा जारी रखने के लिए संसद में पूरा मंजूरी आवश्यक नहीं है।
  • राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय पर एक अनुवर्ती घोषणा के द्वारा वित्तीय आपात को वापस लिया जा सकता है ऐसी घोषणा के लिए संसदीय मंजूरी आवश्यक नहीं है।
  • राष्ट्रपति सभी के वेतन में कटौती कर सकता है। (हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज की भी)
  • यह अभी तक घोषित नहीं हुआ है।

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